सावन में पावन यमुना तट, गोपियन भीड़ लगाई।
चहल पहल तट पर फैला,क्या कान्हा बंशी बजाई।।
झूले क्यो दिखते हर ओर, नया जोश भर आई ।
गोपियन की कोई चुहलकदमी क्या,नया रंग कुछ लाई।।
गोपियन की टोली भी हरदम,इनको नाच नचाई ।
छुपकर पेडों की झुरमुट में, खेल खेलाती आई।।
कान्हा को सब बात पता है, गोपियन समझ न पाई।
सराबोर हो प्रेम के रस मे ,डुबती उतराती जाई ।।
प्रेम के रस मे राधा भींगी, भींगी सभी लुगाई ।
भींग गयी सब सखी सहेली ,कैसी समाँ ये आई।।
डूबे सब हैं कृष्ण के रंग में, नशा गजब की छाई।
तरणी तनूजा के जल में कुछ, नशा यही भर आई।।
सावन की निशा नशीली होती,मादकता क्या लाई ।
नर नारी क्या जीव जन्तु सब,प्रभावित हो आई ।।
बागों मे मोर मोरनियाँ थिरके,गाँवों में लोग लुगाई।
काली घटायें जल बरसा,भर दी सब में अंगराई ।।
गाँवों में चौहट रातों को, परती सदा सुनाई ।
नारी की खुशियां गीतों में ,परती झलक दिखाई ।।
ताल तिलैया नाले नदियाँ ,भी जल से भर आई।
कृषक के खेतों में फसलें भी,देखो कैसा लहराई।।
धन्य धन्य सावन का महीना, दूँ कैसे तुझे बधाई।
तेरे जल से ही धरती , ले पाई फिर अंगराई ।।
Bahut hi pyari kavita…Sir.
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