आया सावन रस बरसाते, भींग गया तन मन सब का।
हरियाली छा गयी धरा पर,खुशियाँ छायी मनपर सबका।
मिली निजात सब को गर्मीसे,झुलसते मनको चैन मिला।
सूख रहे पेडों को फिर से,नवयौवन नया बहार मिला।।
हरे रंग की नई दुपट्टा, हरे हरे परिधान पहन ।
नाच उठा हो आह्लादित, सारा वन सारा उपवन ।।
नयनाभिराम हर ओर लगे,धरती लगती दुल्हन सी ।
क्या मनोहारिणी दृश्य धरा का,आकर्षित करती सी।।
शितल वायु का मंद झकोरा , भाता है तन मन को।
बदल जायेगा मौसम इतना ,विश्वास न होता मन को।।
प्रकृति का बदलाव हमेशा , चलता ही रहता है ।
मौसम आता है जाता है ,क्रम होता ही रहता है ।।
प्रकृति की बदलाव कभी तो , इतना हो जाता है।
परिकल्पना मानव मस्तिष्क, जितना न कर पाता है।।
कहाँ गया विभत्स रूप ,ज्वाला प्रचंड उस गर्मीका।
सब हो गये काफूर, कहाँ से आया है रुख नरमी का।।
विरान पडी धरती पर फिर से,हरियाली का राज हुआ ।
बीत गये दिन दुखके मानों,सुखका सपना साकार हुआ।।
जिधर चाहिए नजर घुमा लें, हरियाली दिखती है ।
सूखे पेडों पर फिर से , खुशियाँ ही दिखती है ।।
गर्मी से भयभीत लोग,जो बैठे थे लुक छिप कर ।
आये बाहर सभी घरों से ,उत्साह नया फिर ले कर।।
स्वागत करते हैं सावन का ,दिल मे भर अनुराग लिये।
नर नारी सब सचर अचर,भर कर दिल में प्यार लिये।।