पिया मेरे परदेश बसत हैं, अगन लगावत काहे ?
बहुत कठिन से आएल निंदिया,शोर मचावत काहे??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?
बेचैनी में कट गेल रैना,अखियन बिन झपकाए।
शोर मचा के तू, रे जुर्मी, झपकी तोड़े काहे ??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे?
काहे घर्र-घर्र करत,दामिनी रह-रह के चमकाये।
बेचैनी में डूबल दिल, भयभीत बनावत काहे ??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?
कौन अदावत तोहरा हम से,चाहल वही चुकावल।
हर लेहल सब चैन जिया के,भेल जुर्म यह काहे ??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे?
अँखियन से आँसू टपकत हे, जैसे जल तू बरसाये।
रोकल चाहीं रुकल न बैरी, मानत नहीं तू काहे ??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?
असर प्रेम के ऐसो तुम में, मनवाँ नाचे सब काहे ?
मोर-मोरनियाँ नाचे बन में, देख देख तोहे काहे ??
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?
सावन के हे रात नशीली, साथ न मनभावन हे ।
बीत जाये दिन चाहे जैसे, रात न बीतल पाये ।।
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?
प्रियतम के जा के तूँ कह द, हमरा दर्द सुना के।
कुछ पल ही है जीवन बाकी,मिल जा थोड़ा आ के।।
रे बदरा, जुर्म करत तू काहे ?