दिल भी अजीब चीज है, क्या सोंचता क्या चाहता।
है क्या संजो रखे हुए, केवल वही बस जानता।।
अरमान पैदा रोज करना, नित्यदिन का काम इसका।
क्या क्या उम्मीदें है जगाता,है जगाना काम इसका ।।
अथाह सागर मे सदा, गोते लगाना काम इसका ।
अंतरीक्ष के हर छोड़ पर, भी पहुँचना काम इसका।।
चंचल अति हर चीज से, द्रुतगति से चाल चलता।
पलभर में जितना लाँघ दे,उतना न कोई लाँघ सकता।।
भ्रमण भी हर लोक का,पलभर में कर सकता है ये।
कल्पना की आँख से सब, देख भी सकता है ये।।
दीदार भी संसार का, कुछपल में कर सकता है ये।
संसार क्या ब्रह्मांड भी,पल भर मे दिखलाता है ये।।
लगाम भी इसपर लगा दे, साधना से साध कर।
साधक बडा़ बेजोड़ होगा,रक्खे उसे जो बाँध कर ।।
मन को अपने बस में कर ले, वह बडा़ बेजोड़ होगा।
सामान्य मानव होन सकता,फरिश्ताओं का सिरमौर होगा।
अदृश्य शक्ति से भरा, बस सिर्फ मानव रूप में ।
अवतरित होता मही पर, वह भी कभी विद्रूप मे।।
बिचार को उत्पन्न करना, ही तो मन का काम है।
फिर हर तरह से सोंचना, मस्तिष्क ये करता काम है।।
काम जब तक दिल करेगा, जिन्दगी आवाद होती ।
काम करना छोड़ देगा, जिन्दगी भी खत्म होती।।
दिल करेगा काम कब तक, है कोई जो जानता।
देख भी सकता कठिन से, पर उसे सब मानता ।।