. (01)
वक्त जाने कब किसी को, क्या बना देता ।
असम्भव को प्रभाव से, सम्भव बना देता ।।
बडे सम्राट को भी ताज से, बेताज कर देता।
पड़े हों धूल में इन्सान के सर,ताज रख देता ।।
(02)
जो धनुष छोड़कर वाण निकलते,वापस कभी नहीं आते।
निकली बातें लौट न पाती, चाहे जिह्वा ही काटे ।।
दोनों ही घाव बनाते गहरा, एक तनपर एक मनपर।
तन का घाव कभी भर सकते,मन का कभीनहीं भरते।।
(03)
खूब तौल लें मन में पहले, फिर अपना मुख खोलें।
मत ब्यर्थ बात में समय ब्यर्थ कर,बातें ब्यर्थ न बोलें।
हित अनहित दोनों ही बनते , अपनी ही बातों से ।
अतः बोलने के पहले खुद ,मन में बातें खुद तौलें ।।
(04)
जो जैसा दिखता दूर से,रहता भी वैसा तो नहीं ?
कोई कहता बडे गुरूर से,कर देता ही वैसा तो नहीं।।
मृगमरीचिका देख कर,खाते धोखा क्या लोग नही?
समझ कर पानी दौड़ते ,पर पानी रहता तो नहीं ??
(5)
आज दुनियाँ में, बहुत कम मीत मिलते हैं ।
समझते मीत जिनको, अधिकांश वे अनहीत होते हैं।।
जब तकलाभ मिलता, मित्रता का ढ़ोग रचते हैं ।
उम्मीदें खत्म होती , दोस्ती को खत्मकरते हैं ।।
(06)
किसी को मित्र कह देना, बहुत आसान होता है।
पर कह कर निभा देना ,तो दुष्कर काम होता है।।
निभाई दोस्ती अपनी, कम एकाध होता है ।
मिलते कोयले के संग ‘हीरा’,जब इत्तिफाक होताहै।।