हम पल दो पल का मीत बनें,पल दो पल साथ निभाना है।
पल दो पलमें बिछड़ेगें फिर,मिलने का कौन ठिकाना है।।
बड़े प्रेम से मिल लो सब से,मन मलीन क्यों करना है।
दिल खोल के रखदो आगे उनके,झिझक तनिक ना करना है।।
जीवन के इस मेले मेंं, कुछ देर ही साथ निभाना है।
अलग होंगे सब के ही सब,कुछपल ही तो संग रहनाहै।
हम पथिक मात्र इस जगती मे, कही रुककर रात बितानी है।
चलते चलते पग थक जाते,बस थोडा रुक जाना है।।
सारी जगती ही है अपनी,बना हर ओर बसेरा है।
रुक कर विश्राम किये लेते,सुबह आगे बढ़ जाना है।।
पल दो पल काबिश्राम मुझे, और न ज्यादा रुकनाहै।
यह तेरा है वह मेरा, यह तो मात्र फसाना है।।
दुनियाँ के हर लोगों में,तेरा मेरा का वहय घुसा है ।
मालूम तो है बिश्राम नहीं, यहीं छोड सब जाना है।।
नाटक कै हम पात्र मात्र,जीवन का रोल निभाना है।
पटाक्षेप होते हैं ज्यो ही,खेल खत्म हो जाना है।।
सूत्रधार के हाथों सब कुछ,जो चाहे नाच नचाता है।
जबतक चाहे वह नाच नचाता, चाहे पर्दा गिर जाना है।
क्या करना है उसे पता है,आगे क्या करवाता है।
क्यों मैं ब्यर्थ करूँ चिंता,काबिल है जो करवाता है।।
हम सभी मात्र है कठपुतली, नाचूँ जैसा नचवाता है ।
सूत्रधार अपनें हाथों, चाहे जो वही रराता है ।।
हम पल दो पल का मीत बने,पल दोपल साथ निभाना है।
पल दो पल में बिछड़ेगें फिर,मिलने का कौनठिकाना है।।