ऐ मौसम की पहली बारिश, कैसी सुगंध ले आई तुत।
तप्त तवा सी अवनीतल थी,थोडी प्यास बुझाई तुम।।
बेचैन सभी थे बिन बिरिश,जीवजंतु सब सचर अचर।
मत पूछो थे क्या आलम,सब पर ही थी गर्मीकी कसर।
कुछ लोग त्याग घर को बैठे थे,पेडों कीछावोंमें आकर।
बिता रहे थे दुपहरिया, पा रहे सुकून यहां आ कर ।।
बेचैन चैन पाने खातिर, थे बैठे पेडों के नीचे ।
कभी नीम की छावों में, कभी बरगद के भी नीचे।।
निहार रहे थे दृग ब्याकुल,आसमान में बादल को ।
त्रास मिटानें की आकुलता, खोजरही थीब्याकुल हो।।
बहुत आरजू और मिन्नत की,आसमान मे बादल आया।
रिमझिम-रिमझिम बूँदे उनकीसारे लोगों को हर्षाया।।
टिपटिप की आवाज धरापर, पानी की बूँदें करती ।
नभ में बादल की गर्जन,रह-रह कर तर-तर करती ।।
काली राथतों में बिजली की ,चमक भयभीत बनाती है।
फहले तो अपनी चमक दिखाती,घरघर आवाजें आती है।
गर्मी से मुक्ति पाई कुछ, तनमन को थोडा चैन मिला ।
झुकते से पेडों पौधों मे, नवसृजन हुआ बहार मिला ।।
नवजीवन का आभास हुआ ,पहली बारिशकी बूँदों से।
उत्साह नया फिर जग आया,मौसम की पहलीबूँदों से।।
प्यासे को पानी मिल जाता ,बुझती उम्मीद जगा देता।
मरते को जीवन मिल जाता,फिर नव उत्साह जगादेता।।
‘जल ही जीवन’है,इससे ही,जग कीसारी हरियाली है।
जल से ही चलती दुनियाँ, वरना ये खत्म कहानी है।।
जल का चक्र चला करता है,बारिश संचालन है करता।
सागर से लेता है जल को,बितरण सब को है करता।।