क्या देश तेरा आजाद हुआ?

सोंचो भारत के नागरिक,क्या अपना देश आजाद हुआ?
बीते सत्तर वर्षो में , हमसे क्या क्या काम हुआ ??

मेरे संग में और देश कुछ, ब्रिटिश से आजाद हुआ।
कहाँ पहुँच गये अन्य देश ,और मेरा क्या हाल हुआ।।

कुछतो समय निकालो सोंचो,क्या खोया क्याप्राप्त हुआ।
दिलवा आजादी चले गये,क्या मकसद उनका पूर्ण हुआ।

गर्व मुझे होताहै उनपर,श्रद्धा से ग्रीवा झुका हुआ ।
आहूति दे पायी उससे जो,क्या स्वप्न तेरा साकार हुआ?

नहीं हुआ साकार अगर तो,सोंच कहाँ क्या चूक हुआ।
चूक उधर जो सुधर गया तो,सपना भी साकार हुआ।।

भ्रष्टाचार अब फैल चुका है ,मानव के रग-रग मे ।
कहीं थोडा तो कहीं अधिक,पर बैठ गया अब सब मे।

घुन बनकर सब के रग में, घुसकर बैठ गया है।
कुतर रहा है अन्लर-अंदर,सब में यह फैल गया है।।

सर्वांगीण विकास हो,न्याय साथ में,ऐसा समाज गढना होगा।
ऐ युग की नयी पीढियां, यह कर्म तुझे करना होगा।।

सब भेदभाव से ऊपर उठ,यह कार्य तुझे करना होगा।
तुम सुधरोगे,जग सुधरेगा, आगे बढ़कर आना होगा।।

उठकर नवनिर्माण करो,समाज को फिर से गढना होगा।
ब्याप्त सभी भ्रष्टाचारों से ,तुमसब को लड़ना होगा।।

विलम्ब न कर ऐ नयी पीढियों, इस भूत को तुम्ही भगा सकते।
अऩुशासन के कोडे मारमार,देश को त्राण दिला सकते।।

भवसागर पार करा दे नाविक.

भवसागर पार करा दे नाविक, सब को पार लगाते हो।
मुझे उस तट पर पहुँचा दो,सबको तुम ही पहुँचाते हो।।

अनजान डगर का हूँ मैं राही,तुमतो इसका निर्माता हो।
कहाँ रहस्य क्या छिपा दिया,तूँहीं तो केवल ज्ञाता हो ।।

तुम भवसागर का निर्माता, तूने संसार बनाया है।
ब्रह्मांड रचा,कुछ और बहुत,कोई समझ न अबतक पाया है।।

ऐ प्रकृति तेरा धन्यवाद, संसार तुम्हारी ही रचना ।
क्या क्या चीज बनाई तूँने,मुश्किल है यह भी कहना ।।

जितनी भी चीजें रच डाली,मुश्किल है गणन उसेकरना।
उपयोगी तो हे,मुश्किल पर, क्या उपयोग इसे करना ।।

पर ब्यर्थ नकोई चीज बनी, इसका भान सदा रखना ।
उपयोगी है हर चीजे सारी, ध्यान सदा देते रहना ।।

अतरीक्ष की चीज बनाई,धरती की हर चीज बनाई ।
सागर के अन्दर और बाहर,तूनेबिचित्र सबचीज बनाई।।

बहुत ज्ञान भर तूने, एक मानव जीव बनाया है।
इसने तेरा निर्माण अभीतक,समझ बहुत कम पाया है।।

ऐ प्रकृति आसान नहीं, तेरे गूढ़ रहस्य पाना ।
समय लगेगा और अभी,फिर भी है कठिन समझ पाना।

पर इतना तो तय है, कोई गुप्त शक्ति है अनजाना।
पर कौन शक्ति ,कैसी शक्ति,अति मुश्किल इसे बताना।

हरपल मे काम चला करता,पर लुप्त सदा रहते हो।
ऐ संचालक तुम ही जानो,क्यों ऐसा करते हो ??

तुम पार लगाते भवसागर,रह गुप्त नजर नहीं आते हो।
ऐ शक्तिमान ऐसा क्यों करते,छुपकर क्यो वाण चलातेहो

भवसागर पार करादो नाविक, सब को पार कराते हो।
मुझे उस तट पर पहुँचा दो,सब को तुम ही पहुँचाते हो।।

ऐ मौसम की पहली बारिश.

ऐ मौसम की पहली बारिश, कैसी सुगंध ले आई तुत।
तप्त तवा सी अवनीतल थी,थोडी प्यास बुझाई तुम।।

बेचैन सभी थे बिन बिरिश,जीवजंतु सब सचर अचर।
मत पूछो थे क्या आलम,सब पर ही थी गर्मीकी कसर।

कुछ लोग त्याग घर को बैठे थे,पेडों कीछावोंमें आकर।
बिता रहे थे दुपहरिया, पा रहे सुकून यहां आ कर ।।

बेचैन चैन पाने खातिर, थे बैठे पेडों के नीचे ।
कभी नीम की छावों में, कभी बरगद के भी नीचे।।

निहार रहे थे दृग ब्याकुल,आसमान में बादल को ।
त्रास मिटानें की आकुलता, खोजरही थीब्याकुल हो।।

बहुत आरजू और मिन्नत की,आसमान मे बादल आया।
रिमझिम-रिमझिम बूँदे उनकीसारे लोगों को हर्षाया।।

टिपटिप की आवाज धरापर, पानी की बूँदें करती ।
नभ में बादल की गर्जन,रह-रह कर तर-तर करती ।।

काली राथतों में बिजली की ,चमक भयभीत बनाती है।
फहले तो अपनी चमक दिखाती,घरघर आवाजें आती है।

गर्मी से मुक्ति पाई कुछ, तनमन को थोडा चैन मिला ।
झुकते से पेडों पौधों मे, नवसृजन हुआ बहार मिला ।।

नवजीवन का आभास हुआ ,पहली बारिशकी बूँदों से।
उत्साह नया फिर जग आया,मौसम की पहलीबूँदों से।।

प्यासे को पानी मिल जाता ,बुझती उम्मीद जगा देता।
मरते को जीवन मिल जाता,फिर नव उत्साह जगादेता।।

‘जल ही जीवन’है,इससे ही,जग कीसारी हरियाली है।
जल से ही चलती दुनियाँ, वरना ये खत्म कहानी है।।

जल का चक्र चला करता है,बारिश संचालन है करता।
सागर से लेता है जल को,बितरण सब को है करता।।