अच्छे बुरे हर लोगों की , भरमार है दुनियाँ।
गर संग दोनों ना रहै, तो बेकार है दुनियाँ ।।
अच्छे-बुरे हरलोग, दुनियाँ में रहा करते ।
बहुत ज्यादा बडा हैं कुछ,कुछ छोटा रहाकरते।।
सबों की सोंच अपनी है, सबों का ढंग अपना है।
तरीका रहन-सहन का,सबों का अलग अपना है।।
भाषा अलग सब की ,ढंग सब खान -पान का ।
रश्में रिवाजें भी सबों का , अलग अपना है ।
अलग है परम्परा अपनी ,हर क्षेत्र में अपना ।
जाते दूर क्यो ज्यादा , यहीं तो देश अपना है।।
नहीं हम मानते केवल, बसुंधरा अपना ।
ये सारा ब्योम क्या अंतरीक्ष भी,लगता ही अपना है।
यही संदेश देता है, भारत विश्व को अपना ।
‘बसुधैव कुटुम्बकम’भावना ,यहाँ हर लोग रखताहै।।
मनिषियों ने दिया ये ज्ञान था, पूरे ही भारत को।
सब लोग में अब बाँटना , कर्तब्य अपना है ।।
जन्म से आता नहीं कोई , सीख दुनियाँ में ।
बनता जो बना देता उसे , परिवेश अपना है ।।
विविध रंगों में हैं रंगे यहां, अजीब ये दुनियाँ ?
नजारायें दिखाती क्या कभी है, आज ये दुनियाँ।।
अदा हूँ शुक्रिया करता ,जिन्होनें है रची दुनियाँ ।
प्रकृति हम सब नमन करते ,बनाई खूब है दुनियाँ।।