ऐ विधाता सच बता, दुनियाँ रची तूँने यही ?
दे ज्ञान सब जीवों से ज्यादा,मानव बनाया है यही??
क्या बनाने मे इसे, तुमसे गलत कुछ हो गया ?
जो सोंचकर तूँने रचा,उससे अलग कुछ हो गया ??
हो गया कुछ तो अलग, कुछ चूक तो हो गयी कहीं।
प्रारूप तूँने था बनाया , हट गयी थोडी कहीं ।।
महज थोडी भूल से , चीजें सभी ही बदल गयी ।
क्या थे बनाना चाहते ,पर चीज ही क्या बन गयी।।
सोंच तो था ,काम उत्तम जिन्दगी में यह करेगा ।
विवेक से कल्याण सब का,यही मानव जीव करेगा।।
पर चूक थोडी लग रही,उनसे कहीं कुछ हो गयी ।
जो बताना चाहते थे, उसमें गलत कुछ हो गई।।
ईमान जितना चाहते थे , डालना पर कर न पाये।
अपनी कसौटी पर मनुजको,चाह करभी कस न पाये।।
भटक जाता जीव मानव, पथ भ्रमित हो कर कभी।
उनको पहुँचना था कहाँ , पर पहुँच जाता कहाँ ??
जो कर्म करने आये थे ,पर कर्म उल्टा कर गये ।
गये उलझ भवजाल में ,उलझे सो उलझे रह गये।।
मकसद जो कुछ था जिन्दगी का,वह अधूरा रह गया।
ख्वाब जो था जिन्दगी का,ख्वाब ही बस यह गया।।
मानव बना भेजे जगत में,कर्म भी कुछ तो बताते ।
इतने.भटकते तो न सारे,कुछ लोग तो सत्पथ पे आते।।
कर रहमसब पर बिधाता, राह अब कुछ तो बता दे।
इतने बडे भवजाल से , मुक्त हमको तो करा दे ।।