ऐ दिल बता तूँ ही जरा,जाऊँ तो जाऊँ मैं कहाँ?
सुनेगा कौन क्यों मेरा,आता नजर कोई कहाँ ??
हमदर्द भी कोई नहीं, दुनियाँ तो यूँ इतनी बडी।
जो हैं दिखावे के लिये सब,मौके पे वे हटकर खडी।।
रहते तो सारे ढेर पर, सब के सब मुख फेरकर ।
हमदर्द शायद कोई हो,होगें खड़े बस घेर कर ।।
साथ की तो छोड़िये,बात तक करते न मुख से।
देगें वे क्या सहानुभूति ,खुश और होगे तेरे दुख से।।
सुख के दिनों मे संग हैं जो, दिन रात रहते साथ हैं।
मुख फेर लेते हैं दुखों में,हो दुश्मनों के साथ हैं ।।
सब जानकरभी क्या करोगे,रहना इन्हीं के साथ है।
सावधानी खुद बरत लो, मनमुटाव ब्यर्थ है।।
सावधानी तो बरतना, मानवीय कर्तब्य है।
हंसखेल कर जीवन बिताना ,भी मनुज का धर्महै।।
इस जिन्दगी का मूल को यह,जो मनुज है जानता।
हंस हंसाता ,खेलता, संताप कोसों भागता ।।
जिन्दगी ले लुत्फ जीना ,ही पते की बात है ।
स्वयं रोना और रूलाना , स्वयं पर आघात है।।
आदमी और जानवर में ,एक ही तो फर्क होता
एक जीता लुत्फ ले कर, दूसरा बेढंग जीता ।।
ये सोंच क्या मेरी गलत है, ऐ दिल मेरा तूँही बता।
पूछ तो कब से रहा हूँ ,कर देर मत जल्दी बता ।।