संसार का सब जीव में ,श्रेष्ठ है गर आदमी ।
निकृष्टता का चरमसीमा ,लाँघता भी आदमी ।।
कृतघ्नता का श्रेष्ठ नमूना, बन गया है आदमी।
दुरुपयोग अपने ज्ञान का,करता सदा है आदमी।।
लोग कहते जीवों में ,महान होता आदमी ।
ज्ञान का भंडार दे , भेजा गया है आदमी ।।
बलवान तो सब जीव से ,होता नहीं है आदमी।
विवेक से सब नियंत्रण, कर लिया है आदमी ।।
कर्म ही महान होता ,न महान होता आदमी ।
कर्म चाहे जो बना दे ,बनता वही है आदमी।।
विवेक तो सब को मिला,कुछ भूल जाताआदमी।
विवेक से जो काम लेता, वही होता आदमी ।।
बेईमानी, लोभ का , पर्याय अब है आदमी ।
सदैव बिकने के लिए ,तैयार है अब आदमी ।।
स्तर न कोई चीज का ,रखा बचाये आदमी ।
लोभ में आ आदमी ही ,कत्ल करता आदमी।।
गौतमबुद्ध तो थे आदमी,बाबा साईं भी थे आदमी।
सुकर्म जिन्होने किया ,भगवान बन गये आदमी ।।
आज भी संसार में है , हर तरह का आदमी ।
स्वकर्म से ही पूज्य या , अपूज्य होता आदमी ।।