पथिक बढ़ते जाओ अविरल

पथिक बढ़ते जाओ अविरल,अपने जीवन की राहों पर।
मुड़कर मत देख कभी पीछे,इन भीड़ भरी चौराहों पर।।

है भीड़ बहुत इन राहों पर,सम्हल कर कदम बढा़तेजा।
ध्यान नविचलित होने पाये,फिसलनसे सदा सम्हलते जा।।

एक चूक जान ले सकतीतेरी,मत समझो इसको आसान।
सतर्क सदा रहना होगा,इन राहों से तुम हो अनजान।।

जो सम्हल-सम्हल कर चलते हैं,पग उनकेनहीं बहकतेहैं।
मंजिल को अपना पा लेते,जीवन को सफल बनाते हैं।।

ऐपथिक रहो तुम सावधान,पथ कठिन नहीं,नहीं आसान।
निरंतर बढ अपना पथ पर,मंजिल हो जायेगा आसान।।

माना राह अगर है लम्बी, ऊँची नीची है पगडण्डी ।।
कर सकते पथ मे विश्राम, छाया पेडों की देगी ठंढी़।।

पथिक का रैन बसेरा क्या,बंधन का उसे बखेरा क्या?
थकजाना ही रुकजाना है,सुबह है क्या ,संध्या क्या??

बनजारों का सा पथिक जीवन,जीचाहे वहींहै रुक जाना।
जबतक जीचाहा रूक पाना,जीचाहे उठा निकल जाना।।

स्थाई कोई चीज नहीं, ये दुनियाँ ही है अस्थायी ।
जब जग ही नहीं स्थाई, फिर किसे कहेगे स्थाई।।

हम बनजारों का कौन ठिकाना,कब आना कबजानाक्या?
कहाँ किसे कैसे है रहना,उसका भी कोई ठिकानाक्या??

पथिक तो रहते हैं चलते,कारवां नहीं रुक पाता है।
कुछ लोग बदलते रहते हैं, कुछ आता कुछ जाता है।।

हैनियम शाश्वत यही यहांका,आदिकालसे होता आया है।
पालन तो करना है सब को, यही तो होता आया है।।

फैशन.

आदिकाल से सबलोग को ,पसंद है फैशन।
प्रभाव सारे लोग पर, जमाये है फैशन ।।

ढंग से रहना सिखाता, लोग को फैशन ।
तरतीब मानव जिन्दगी का ,बन गया फैशन।।

यह आधुनिक केवल नहीं , प्राचीन है फैशन।
हर काल का पहचान का ,दर्पण है ये फैशन।।

हरेक युग का अपना , पहचान है फैशन ।
एहसास उनके युग का ,करता है ये फशन ।।

आधुनिक दुनियाँ का समझें, प्राण है फैशन।
निष्प्राण ही समझे ,जिसे भाता हीं फैशन ।।

संसकृति का जागता , तकदीर है फैशन ।
अब तो देश के बिकास का,तस्बीर है फैशन।।

गुणवत्ता देखता कोई नहीं, हावी सब पे है फैशन।
बना दिया सब को दीवाना , आज है फैशन ।।

आदमी

संसार का सब जीव में ,श्रेष्ठ है गर आदमी ।
निकृष्टता का चरमसीमा ,लाँघता भी आदमी ।।
कृतघ्नता का श्रेष्ठ नमूना, बन गया है आदमी।
दुरुपयोग अपने ज्ञान का,करता सदा है आदमी।।

लोग कहते जीवों में ,महान होता आदमी ।
ज्ञान का भंडार दे , भेजा गया है आदमी ।।
बलवान तो सब जीव से ,होता नहीं है आदमी।
विवेक से सब नियंत्रण, कर लिया है आदमी ।।

कर्म ही महान होता ,न महान होता आदमी ।
कर्म चाहे जो बना दे ,बनता वही है आदमी।।
विवेक तो सब को मिला,कुछ भूल जाताआदमी।
विवेक से जो काम लेता, वही होता आदमी ।।

बेईमानी, लोभ का , पर्याय अब है आदमी ।
सदैव बिकने के लिए ,तैयार है अब आदमी ।।
स्तर न कोई चीज का ,रखा बचाये आदमी ।
लोभ में आ आदमी ही ,कत्ल करता आदमी।।

गौतमबुद्ध तो थे आदमी,बाबा साईं भी थे आदमी।
सुकर्म जिन्होने किया ,भगवान बन गये आदमी ।।
आज भी संसार में है , हर तरह का आदमी ।
स्वकर्म से ही पूज्य या , अपूज्य होता आदमी ।।