ऐ दिल रहता बेचैन बता क्यों,बात नही बतलाते हो?
घुटते रहते अन्दर हरदम,क्यों नहीं जुबां पर लाते हो?
बादल सा छाया है रहता, दिलमें बेचैनी का आलम।
ना खुलकर कभी बताते हो,ना खुलकर कभी दिखातेहो।
माना दुनियाँ चिंता का गढ़है,रहते खोये सबलोग इसीमें।
दिले नादान क्योंनही समझते,क्यो इनको भूलन जाते हो।
चैन सबों का हर लेती, देती डूबोये भवसागर में ।
क्रूर प्रहार करती हो सबपर,निर्मम इतनी क्यों होती हो?
कराह रहा होता है दिल, तडपा करता है पीडा से।
क्रंदन करता अंदर अंदर,सुनकर क्यों खुश तुम होतीहो।।
क्यों फिर भी चिंता करना,क्यों समझ नहीं तुम पातेहो?
चिंता तो सदा जलाती जिंदा,क्यों इसको गले लगातेहो?
क्यों रहना इसके पीछे,अपना क्यों करते ब्यर्थ समय ।
कर्तब्य करो बढ़ आगे आ,संकोच भला क्यो करते हो।
निदान नहीं चिंता से होता, कर्तब्य इसे करता है ।
उचित कर्तव्य करो अपना,उलझे क्यों उसमें रहते हो??
ऐ दिल सोंच तूँही थोडा, बेचैन हुए क्यो जाते हो?
धीर और गंभीर रहो, अधीर हुए क्यों जाते हो ??
बेचैनी में मत रहना, बेचैन हुए क्यों जाते हो। ?
मकसद नहीं सधेगा उससे,ब्यर्थ परेशान हुए जाते हो।।
गूढ़तत्व को ढ़क देना, कभी होता आसान नहीं ।
है ब्यर्थ चेष्टा अतिघातक,क्यों गूढ़ समझ नहीं पातेहो??
सच्चाई का मार्ग सरल है, दिखता पर अतिदूर बहुत ।
निश्चित पर गंतब्य पहुँचना,अन्यत्र कहीं क्यो जाते हो??
ऐ दिल रहता बेचैन बता क्यों,बात नहीं बतलाते हो?
घुटते रहते अंदर हरदम,क्यों नहीं जुबां पर लाते हो??
“क्यों नहीं जुबां पर लाते हो?&rdquo पर एक विचार;