ऐ जिन्दगी, क्यों नजारायें दिखाती हो.

ऐ जिन्दगी क्या क्या , नजारायें दिखाती हो।।
रुलाती हो कभी कितनी, कमी कितनी हंसाती हो।।

होती जिन्दगी सचमुच , गमों की ही भरी दरिया।
दिखाती तैरते उसमे, कभी डूबती दिखाती हो ।।

बेशक बना देती तमाशा, खुद बन तमाशाई ।
हँसाते लोग को मुझ पर , समाँ ऐसी बनाती हो ।।

कभी हमदम नजर आती, कभी दुश्मन नजर आती ।
मर्जी जो तेरी होती , वही मुझको दिखाती हो ।।

लगता हाथ का बन कर , खिलौना बन गया तेरा।
भरता जी, मुझे तब तोड़ कर ,कचरे बनाती हो ।।

रहा ऐतबार अब नहीं , तुम पर ऐ जिन्दगी ।
समझता था तुझे जैसा ,नजर वैसी न आती हो।।

नहीं मैं हारना सीखा , कभी भी आपदाओं से ।
सितम ढ़ाती रहो ढाओ ,भभकियाँ क्यो दिखाती हो।।

लड़ूँगा तब तलक ,मुझमे रहेगी साँस अंतिम तक।
तरेरे आँख अपनी ब्यर्थ,मुझको क्यों डराती हो ।।

जानें के लिये ही आई है ,ऐ जिन्दगी तुम तो ।
फिर लौटनें की ब्यर्थ धमकी, क्यों सुनाती हो ।।

समझा जो किया करते ,सदा ये मान कर कहते।
अनित्य खुद हो जिन्दगी ,भरोसा क्यों दिलाती हो।।

चलो एक चाल सादा सा ,निभे जो जिन्दगी पूरी।
जो होती चाँदनी दो चार दिन की,क्यों लुभाती हो।

करे कोई भरोसा क्यों , तुम्हारी ऐ जिन्दगी ।
बेगानों की तरह जब चाहती, मुँह मोड़ लेती हो।।

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s