क्या लिखूँ और क्या नहीं?

सोंचता हूँ क्या लिखूँ, आती समझ मे कुछ नहीं ।
मौला मेरे तूँ ही बता, क्या लिखूँ और क्या नहीं??

दर्द अनेंकों ही दफन है, दिल के इस मजार मे।
बाहर करूँ,निकाल फेकूँ ,या छोड़ूँ इसी मजार में?

बन कर मनुज हम आये शायद,दर्द सहने के लिये।
सह कर जहाँ की वेदना , चुपचाप रहने के लिये ।।

करता नहीं प्रतिरोध हूँ, चुपचाप सहता जा रहा ।
पर भावना प्रतिरोध का, अविरल ही बढ़ता जा रहा।।

सीमा चरम को छू न ले, रोकना पहले पड़ेगा ।
हद से गुजरनें के ही पहले,कुछ कर गुजरना तो पडेगा।

देखियेगा हर जगह, आतताइयों का राज है ।
बर्चस्व चलता है उसी का ,हर जगह पर आज है।।

सामान्य जन को न्याय पाना ,ही बहुत दुस्वार है ।
अपार धन और बाहुबल , सतत करता वार है ।।

हर आदमी जब तक नहीं, कर्तब्यनिष्ठ हो जायेगा ।
इन्सान का शोषण न तब तक,रूक कहीं भी पायेगा।

स्वार्थ का जब बोलबाला ,हर जगह हो जायेगा ।
अन्याय नामक जानवर फिर,खत्म नहीं हो पायेगा ।।

गर रोकना अन्याय है तो, स्वयं पर संयम करो ।
स्वयं को पहले सुधारो , और को पीछे धरो ।।

अन्याय से लड़ना मनुज का,ही तो पावन कर्म है।
झुकते नहीं जो जूझ जाते , यही तो मानव धर्म है।।

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