अब क्या करूँ बता मेरे दिल, तूँ है कि बतलाता नही।
पूछ तो कब से रहा हूँ,फिर भी तो समझाता नहीं .।।
उलझे सदा उलझन मेंं ही, रहते हैं कुछ कहते नहीं।
दिखता न कोई राह मुझको आता समझ मे कुछ नहीं।।
मंजिल बहुत ही दूर है, हर ओर कुछ दिखता नहीं ।
किस ओर है मंजिल मेरी, यह भी हमें पता नहीं ।।
अज्ञानता का ‘बीच सिन्धू’ मेंं पडा़ हुआ यहीं ।
सोंचता तोजा रहा , समझ में पर आता नहीं ।।
दिखलाओ मेरा रास्ता , जल्दी क्यूँ दिखलाता नहीँ?
भवजाल में उतार मुझको , दीदार तक देते नहीं ।।
देर कर मत और ज्यादा, अब वक्त ज्यादा है नहीं।
अवसर गया जब हाथ से ,लौट फिर आता नहीं ।।
घवराओ मत ,लो फैसला , डरनें से कुछ होता नहीं।
निर्भीकता से सोंच लो, हरबर से कुछ होता नहीं ।।
अब क्या करूँ बता मेरे दिल,क्यों तूँ बतलाता नहीं।
पूछ तो कब से रहा हूँ ,फिर भी समझाता नहीं ।।