सेज फूलों की भी , काँटों से घिरे होते हैं ।
जिधर भी देखिये, काँटो से भरे होते हैं ।।
दिखता नहीं तो दूर से , उनकी भरी मजबूरियाँ ।
देखें ,जरा करीब आ , बड़े मजबूर पड़े होते हैं।।
जिस्म नाजुक इतनी , फूलों से भी बहुत ज्यादा ।
कोमल मुलायम पंखुड़ी ,काँटों सा चुभन देते हैं।।
आती खुशबू यों, इन फूल के कोमल दलों से ।
नशा भी हौले से , मादक मदों सा होते हैं ।।
‘फूलों की सेज ‘ जो , ख्वाबों में डुबोये होते ।
उनके टूटते हैं ख्वाब जब , औंधे वे गिरे होते हैं ।।
ख्वाब तो देखते सब लोग है , नहीं ये चीज बुरी ।
नहीं जो देखते , पत्थर से सख्त होते हैं ।।
मगरूर क्यों होते , अपनें धन बल को देख कर ।
ये तो महज बालू के भीत हैं, ये खुद ही ढ़हे जाते हैं।।
गगन को चूमती अट्टालिकायें ,जरें भी कीमती पत्थर।
छलावा मात्र हैं सारे ,धराशायी हो ,लुप्त हो जाते हैं ।।
छलते जा रहे क्यों , इन छलाओं से , सब कुछ जानकर।
तोड़ डाल मकरजाल को, क्यों फंसे जाते हैं ।।
दूर से जब देखते , दिखते अति सुन्दर सभी कुछ ।
करीब जा कर गौर कर , सब बदलते हुए से होते हैं ।।
सेज फूलों की भी , काटों से घिरे होते हैं ।
जिधर भी देखिए , काँटे ही भरे होते हैं ।।