फूल-सा नाजुक बदन, खिलता हुआ गुलाब तुम।
नाज तुम पे गुलिस्तां का, हँसता हुआ सबाब तुम।।
तुम बहारों में न केवल, बहार का सरताज तुम ।
चाँदनी महफूज तुमसे, इस धरा का चाँद तुम ।।
तुझे देख गम दफा होता, इस जहाँ का नूर तुम।
मायूसियत भी भाग जाती, हर दर्द की ही दवा हो तुम।
फेरे लगाये भ्रमर तेरे, फिर भी रही चुपचाप तुम।
मुख फेर कर नजरें बचा, करती सितम हर बार तुम।
नकाब में रहना सदा ही, होना न बेनकाब तुम ।
तुझे देख मर जायेगे खुद, इल्जाम लोगे ब्यर्थ तुम।।
तुझे क्या कहूँ ऐ दिलरूबा, करना नहीं इन्कार तुम।
दो जिन्दगी बर्बाद होगी, जो कर दिये इन्कार तुम।।