है कौन कहता तुम सा ,जहाँ में कई हसीं ।
यकीन तो मुझको नहीं, दिखाये तो सही।।
दिख जाये जो तुम सा ही,इत्तेफाक से कहीं।
पर जो बात तुममें है, उसमें आये तो सही।।
फेरता हूँ जब कभी ,नजरें घुमाये सरसरी ।
आती नजर न तुम सा, नजर आये तो सही ।।
इत्मीनान से फुर्सत में,तनहा ही बैठकर कहीं।
सोंचेगा क्या चितेरा , ये बताये तो सही ।।
सोंचता रह जायेगा, उलझन मे पड़ वहीं कहीं।
पूछेगा वहाँ किससे , समझाये तो सही ।।
मुकावला तेरा नहीं , इस जग में है कहीं ।
आशा ही नहीं बिश्वास है, गलत तो है नहीं ।।