कलम चलती रही है कलम रूकती नहीं है ।
सदा ही लोग को अवगत,कुछ करती रही है ।।
अथाह क्षमता है भरी, कुछ भी करा सकती कभी।
तुफान को भी शान्त कर दे,तुफान ला सकती कभी ।।
धार इनकी तीक्ष्ण होती , काफी अधिक तलवार से ।
तलवार से बच जाये पर, बचता न इसकी धार से ।।
जानवर को आदमी भी ,यह बना देती कभी ।
खूँखार में भी नम्रता , भर दिया करती कभी ।।
कभी जब रंग भर देती , जमाना ही बदल जाता ।
थक कर हार जो बैठे,नया फिर जोश भर जाता ।।
नया प्रवाह भर देती, दिशायें ही बदल जाती ।
थी मद्धिम गति जिनमें, अचानक द्रुत गति आती ।।
अपनी ओर से प्यारी कलम ,कुछ भी करा देती ।
दुनिय़ाँ ही नहीं केवल ,बैठे हुए ब्रह्माण्ड दिखलाती ।।
करिश्मायें बहुत इनमें, जानें क्या करा देती ।
नव जिन्दगी देती किसी को,किसी की जिन्दगी लेती ।।
अछूता कुछ नहीं इससे,जहाँ यह कुछ न कर पाती ।
बैठे यहीं पर ,जग का सारा,पाठ पढ़वाती ।।
इसे छोटा नहीं समझें , न कीमत आँक कोई सकती ।
एटम बम भी इसके सामनें, पीछे ही रह जाती ।।
जो कुछ सोंचता मानव, यह लिपिबद्ध कर देती ।
सोयों को जगा देती, नव यौवन उसे देती ।।
अनेंको और गुण इनमें ,जिसे ब्याख्या किया जाये ।
कागज गर बनें धरती, वह भी कम ही पड़ जाये ।।
कलम चलती रही है, कलम रुकती नहीं है।
युगों से सारी बातों को, सदा करती रही है ।।