बनते बनते भी कभी, कुछ बात बिगड़ जाती है।
करीब आ के भी बहुत, बहुत दूर चली जाती है ।।
लगता,नहीं है दूर अब, मुरादें हो चुकी पूरी ।
एक झोंका ,आ हवा की , मिटा सब चली जाती है।।
मुकद्दर है यही शायद , जिसे सब लोग हैं कहते।
लिखा है जो, उसे, भुगतनी पड़ ही जाती है।।
मैं भी हूँ अडा़ जिद पर, नहीं हूँ हारने वाला ।
कभी तो मौत को भी, लौटनी पड़ ही जाती है।।
हारना – जीतना , दो पहलु हैं इस जिन्दगी के ।
जीतने वाले को भी, कुछ हारनी पड़ जाती है।।
मुबारक हम उन्हें देते , बनाया जो ये जग सारा ।
बनाया खुद, मगर, मिटानी पड़ ही जाती है ।।
यही तो जीतने और हारने को, जिन्दगी कहते ।
क्रम जब तक चले, जिन्दगी आबाद चलती है ।।