अपना गाँव

जब से मैने होश संभाला, स्मरण आज जब करता हूँ।
मन मस्तिष्क में पडी़ वही , तस्वीर पेश कुछ करता हूँ ।।

बचपन बीता इसी गाँव में, अब जब वृद्ध हुआ जाता हूँ ।
बस्ती के चप्पे-चप्पे से , वाकिफ ही रहता आया हूँ ।।

पहले क्या था ,कैसे थे हम , रहन सहन था कैसा !
जीने का ढ़ब बदल गया अब , पर पहले था कैसा !!

निश्छल थे अधिकांश यहाँ , सब के सब थे भोले भाले ।
बहुत प्रेम आपस में रहता , दिल नहीं किसी के काले ।।

भौतिकता की बहुत कमी थी , पर संतुष्ट सभी थे ।
नहीं जरूरत ज्यादा उनको , थोड़े में सब खुश थे ।।

प्रकृति भरोसे सब रहते , बिजली -पंखे भी नहीं थे।
सर्दी -गर्मी सभी झेलते , कोई फिक्र नहीं करते थे ।।

बहुत सादगी का जीवन था , रहन सहन सब सादा ।
जान लगा कर उसे निभाते , जो करते थे वादा ।।

निपट खेती के काम-काज से, नित चौपाल पहुँच जाते थे ।
इधर उधर की बातें सारी , बैठ वहीं करते थे ।।

अगर समस्या कुछ हो , सब मिल निदान करते थे ।
कोई विभेद न रहता मन में ,मिल कर सब हल करते थे।।

सारा गाँव ,गाँव नहीं, परिवार एक लगता था ।
सभी दूसरे को हरदम , सम्मान किया करता था ।।

तन पर वस्त्र नहीं रहता था, रहता भी तो थोडा़ ।
ठंढ़ काटते बिना रजाई , बिस्तर में भरते पोडा़।।

कृषक बडे़ तंगी में रहते , इस कृषि प्रधान वतन में ।
भोजन देता है जो सबको , उन्ह़े हाड़-माँस न तन में।।

कुछ पढा वर्ग जो शहर चले गये, छोड ग्राम को अपना।
ध्यान न देते उसी गाँव पर, जो पूर्ण किया सब सपना ।।

जरा सोंच कर देखो थोडा़, जिसने तुमको योग्य बनाया ।
खुद झेला सारा अभाव पर, तुझको पढ़ने शहर पठाया।।

ध्यान अगर दो थोडा़ उस पर, ग्रामीण संभल कुछ जाये ।
उपकार किया जो उसने तुम पर , ऋण थोडा़ चुक जाये।।

पर नही किया तुमने ऐसा, अपनों पर रहम न आया ।
स्वार्थ बहुत हावी है तुम पर, तेरा गाँव नहीं बढ़ पाया ।।

केवल अपने स्वजनों पर भी, ध्यान अगर थोडा़ देता ।
गांव सभी विकसित होते, फिर देश भी विकसित होता।।

 

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