नारी तेरे रूप अनेकों , कितने रूप दिखाती हो ।
नाच नचाती नर को हरदम,फिर भी अबला कहलाती हो ।।
शक्ति का पर्याय तुम्हीं हो , शक्ति ही तुम कहलाती हो ।
नहीं आज से आदिकाल से, ही अबला कहलाती हो ।।
शक्ति अथाह निहित तुम में , माँ दूर्गा ,माँ कालि तुम हो ।
रण-चंडी का रूप लिये, जग को त्राण दिलाती तुम हो ।।
कभी जरूरत आ ही गयी तो, झाँसी की रानी भी तुम हो।
महारानी लक्ष्मीबाई बन, रण -कौशल दिखलाई तुम हो ।।
कभी ताड़का बन लोगों मे , जम आतंक मचाती तुम हो।
हत्यारिनी और अनाचार का,नंगा नृत्य कराती तुम हो।।
इस युग में भी फूलनदेवी, बन उत्पात मचाती हो ।
फिर भी लोगों से न जानें , अबला क्यों कहलाती हो ??
अंतरिक्ष का भ्रमण, चावला बन कर तुम करआती हो ।
कदममिला पर्वतारोही बन,साहस कमनहीं दिखाती हो ??
नहीं काम ऐसा कोई जो , नहीं उसे कर पाती हो।
सारे कर्मों मे जगती का, अपना रोल निभाती हो ।।
शिक्षाजगती मेंभी अपना, परचम तुम लहराती हो ।
परिवेश मिले गर तुम्हें बराबर,उनसे आगेबढ़ सकती हो ।।
स्त्री -पुरूष का मिटे भेद गर ,पुरुष प्रधान इस जग से ।
लो अधिकार बराबर का , क्यों अबला बन बैठी कब से??
है शक्ति तुममें ,पर हो सोयी,झकझोर जगा तोसकती हो।
उठो मत देर करो सबला ,अबला क्यों तुम कहलाती हो ।।
अबला बन कर तुम अपमानित, क्यों समाज से होती हो?
प्रतिकार करो भ्रम तोड़ो उनका,चुप्पी साधे क्यों बैठी हो।।