माँ गंगा

धरती पर आयी माँ गंगा, लाया भागीरथ तुमको।
तप कठिन किया ,खुश कर तुमको,तैयार किया आने को।।

आने को तैयार हुई पर , एक लगाई शर्त बडी़ ।
कौन करेगा भार वहन ,धरती पर होगी गर्त बड़ी।।

किया भगीरथ पुनः तपस्या,हो गये गंगाधर खुश झट से
चली धरा पर उतरी गंगा, रह गई फंस उनके लट से।।

टूटा माँ का दर्प ,हुआ आभाष, लोग हैं और बडे़ ।
प्रकृति की करतब असीमित है ,मत करना अभिमान बडे़।।

आ कर धरती पर तार दिया , राजा सगर के पुत्र तरे ।
भागीरथ के तप बल से , पूर्वज उनके सब लोग तरे ।।

बढी गंगा आगे धरती पर , गंगोत्री, हरिद्वार तरे ।
ऋषिकेश, एलाहाबाद तरे , तरी काशी, बिश्वनाथ तरे ।।

यूपी, बिहार की धरती तरी ,तर गये बंगाल के लोग सभी।
मिल गयी गंगा सागर में जा, ले डुबकी तर गये लोग सभी।

तर गये जो गंगा नाम लिये ,मत पूछो जो जलपान किये ।
अमृत तेरा जल, माँ गंगे,औषध गुण  विविध महान लिये।

सिंचित करती धरती अपनी , उर्वरा बढा़ देती उनमें ।
वेगवती, ऊर्जा  देती, रोशनी फैलाती घर-घर में ।।

 

माता कह सम्मान है करते, हम जन-जन, भारत के वासी ।
बसे है तेरी आँचल में, माँ फिर क्यूँ छाई घोर उदासी॥

गुमसुम, शायद इसी लिये , कि माता तो सब हैं कहते ।
पर गंदा करने मे तुझको , तनिक हया नहीं करते ।।

अमृतजल न बनें गरल, क्या किंचित ध्यान भी देते हम ।
अपनी लालच, तृष्णा में, क्यूँ तुझे डुबाये देते  हम  ॥

सारे गन्दे कचडे ,नाले , सीधे तुझमे डाल दिये ।
दूषित कितनी तू होती , हम तनिक न  कभी ख्याल किये ।।

जब तक समझ न पाएंगे हम , माँ गंगा बदहाल रहेगी।

हम सब मिल-जुल करें यतन, तब ही माँ फिर खुशहाल बनेगी॥

माँ गंगा के खुश होने से, सुख-समृद्धि आएगी।

जीवन मंगलमय होगा, माँ भारती जश्न मनाएगी॥