प्रकृति का सम्मान

पानी जब बादल बन जाता ,उड कर नील गगन में जाता।

नभ मे पक्षी सा उड़ता फिरता,देख धरा को मोद मनाता।।

करता है वह आसमान में , इधर -उधर का सैर सपाटा ।

कभी चाँद या कभी सूर्य को ,नजरों से ओझल कर देता ।।

नभ के बादल ,सूर्य ,चाँद , और छोटे मोटे सभी सितारे ।

खेल खेलते लुका छिपि का, मिल कर इनके बच्चे सारे ।।

ऐ बादल पावन कर्म है तेरा , जीवन देते हो सब को ।

बनस्पतियों और जीव जन्तु, सारे सचर -अचर को ।।

बिना तुम्हारे जीव जन्तु कोई , नहीं धरा पर रह सकता ।

तेरा जल अमृत होता , तुम बिन कैसे कोई जी सकता ।।

बादल बन पर्वत के सारे , जीव -जन्तु को जिया रहे ।

पर्वत पर पौधे उगा- उगा , जंगल झाड़ी बना रहे ।।

धरती के समतल पर भी तो ,हरियाली का राज तुम्हीं हो।

नहीं अगर तूँ रहे धरा पर , जीव -जन्तु का नाम नहीं हो ।।

तुम ही जीवन सब जीवोंं का , तुम बिना न कोई जी सकता ।

नहीं कल्पना बिना तुम्हारे , अवनी पर कोई कर सकता ।।

जीवन का आधार यही , प्रकृति प्रदान करती रहती ।

पवन की भाँति इसे मुफ्त में ,सब जीवों को देती रहती ।।

फिर भी मानव बर्बाद इसे , हरदम ही करता रहता है ।

इसे प्रदूषित करनें में , दिन रात लगा ही रहता है ।।

हो सावधान ऐ जगवासी , मत अपने को बर्बाद करो ।

प्रकृति का जो काम काज है , उसमें मत ब्यवधान करो।।

स्वच्छ बना है , स्वच्छ रहा है , स्वच्छ इसे रहने दो ।

मत डाल गन्दगी ,मत कर गन्दा ,अमृत को अमृत रहने दो।।

जीवन-पथ

कर लो फूलों से दोस्ती, काँटों से कर लो यारी ।
सब का महत्व है अलग अलग,सब की हो खातिरदारी।।

जीवन पथ पर चलना है तो,कैसे क्या-क्या करना होगा।
मित्र बनेगा कौन कभी , सबसे मिल कर रहना होगा ।।

समय बदलता है रहता , हालात बदलते रहते हैं ।
साथ समय के एक नहीं , सब बात बदलते रहते हैं ।।

जो शुभचिंतक थे कभी आप के, मुँह मोड़ आज वे बैठे हैं।
मिलते रहते थे गले -गले जो, अलग-थलग हो बैठे हैं ।।

तैयार सदा जो थे रहते , चुपचाप अलग हो बैठे हैं ।
समझ नहीं कुछ आता है , नाराज हुए क्यों बैठे हैं ।।

सम्मान करो तिनके का भी, बेकार नहीं कुछ बनी यहाँ ।
जिसने संसार रचाया है , हर चीज रचा है वही यहाँ ।।

जो  रचा है सब उपयोगी हैं , हर कण-कण का उपयोग यहाँ ।
मत सोच कभी अपने मन में, बेकार पडी कोई चीज यहाँ।।

बेकार अभी जो समझ रहे , पर कभी जरुरत पड़ जाती।
समय कभी आता उसका , अनमोल चीज है बन जाती ।।

समय किसी का कब आ जाये ,नही जानता कोई कभी ।
जो सदा उपेक्षित रहता था, पर उसे खोजते आज सभी ।।

प्रकृति ने जो चीज बनाई है, ब्यर्थ नहीं वह हो सकती ।
अनभिज्ञ हों हम उनके गुण से, ये कमी है हम में हो सकती।।

ऐसी भी आफत आ जाती, जीवन पर संकट छा जाती ।
तब वही उपेक्षित संजीवन,नव-जीवन उनको दे जाती ।।

तब भाव उसी का बढ़ता है , इतिहास नया वह गढ़ता है।
जो सुना नहीं मानव अब तक, वह नई कहानी कहता है।।

सब सम्मान करे सब का , सब चीज सबों को प्यारी ।
सब लोग लगे अपना सबको , ऐसे हों सब संसारी ।।