अंजाम भुगतते रहना

हम हैं भारत के वासी , शान्ति के प्रवल पुजारी हम।
पर नहीं गलतफहमी में रहना, तनिक किसी से कहीं हैं कम।।

सम्मान किसी भी को देना , फितरत में रखते हैं हम ।
गौरवशाली इतिहास है अपना ,आदि काल से रखते हम।।

शेरों सा जीवन जीता हूँ, नहीं किसी का हमें है गम ।
करता हूँ सम्मान सबों को , सब का आदर करते हैं हम।।

पड़ोसी देशों का सम्मान , सदा से हम करते हैं ।
कदापि मतलब नहीं कभी , हम उन सबसे डरते हैं।।

यारों के तो यार हैं हम , गरदन अपनी दे सकते हैं ।
नीयत खराब करते उनकी ,गरदन उतार ले सकते हैं।।

‘जियो और जीने दो ‘का , पैगाम सदा हम देते हैं ।
‘बसुधैव कुटुम्बकम’ को ,जीवन में सदा उतारे रहते हैं।।

देता हूँ उपदेश न केवल , आचरण हमारी भी ऐसी ।
ज्ञानी -मुनियों ,संतों ने खुद , हमें बताया है वैसी ।।

सबसे रखता हूँ स्नेह , न कमजोरी इसे समझ लेना ।
मानवता के हम सभी पुजारी,कुछ गलत न इसे समझ लेना।।

मित्रता को कर दरकिनार ,दुश्मनी अगर है कर लेना ।
फल धृष्टता का पाने को , तैयार स्वयं को कर लेना ।।

सर कलम तेरे करने में मुझको ,दुख अवश्य है होना ।
पर मातृभूमि की रक्षा में , कर दूँगा जो हो करना ।।

सीधी बात बता दी हमनें , तुझे जो करना हो करना ।
सारी गलती होगी तेरी , अंजाम भुगतते रहना ।।

कान्हा, तेरी लीला समझ न आये

हम सब नाचे ,बंसी के धुन पर ,कान्हा मुरली बजाये ।
एक नचाने वाला वह , बाकी नाचे सब कोये ।।
कान्हा, तेरी लीला समझ न आये ।।
तुम तो काला,काली कमली , कर मुरली ले धाये ।
अपने रंग से राधा रानी , तुमको हरित बनाये ।।
कान्हा तेरी लीला समझ न आये।।
बडी़ -बडी़ लीला बचपन से , तुमने कर दिखलाये ।
माखन चोरी , ग्वाल बाल संग , मिल कितने करवाये।।
कान्हा तेरी लीला समझ न आये ।।
कालिन्दी- कुल कदम्ब डाल पर , नटखट तूँ चढ़ जाये ।
ले कर चीर बैठ डाल पर , मुरली लगे बजाये ।।
कान्हा ,तेरी लीला समझ न आये।।
दुष्ट कालिया यमुना जल में , आतंक बड़ा फैलाये ।
जो जाता डँस मार गिराता , उसको नाथ नथाये।।
कान्हा, तेरी लीला समझ न आये।।
देवकी-बसुदेव के यदुनन्दन, यशोदा लाल कहाये ।
अत्याचारी कंस मार , मथुरा भयमुक्त कराये ।
कान्हा ,तेरी लीला समझ न आये।।
कानी ऊँगली से गोबर्धन , छतरी-सा लियो उठाये ।
कुपित इन्द्र के उग्र रूप से , सब को दियो बचाये ।।
कान्हा , तेरी लीला समझ न आये ।।
तूँ गोपियन संग रास रचाये, पनघट पर उधम मचाये।
फोड़ घडा़ सिर पर से जल का, चुनरी दियो भिंगाये ।।
कान्हा, तेरी लीला समझ न आये ।।
बाल सखा संग घर-घर जा कर ,माखन रोज चुराये ।
बाँट -बाँट कर खाये मिल सब ,जसुमति उलहन पाये।।
कान्हा ,तेरी लीला समझ न आये।।
बाल सखा एक मित्र सुदामा ,अति-दीन मृदुल सुभाये।
प्रेम भाव से निभा मित्रता , समृद्ध दियो बनाये ।।
कान्हा ,तेरी लीला समझ न आये।।

समझ लीजिए

नगमा न दिल की मेरी ,पुकार समझ लीजिए ।
जो कह रहा हूँ दिल का , गुबार समझ लीजिए।।
गम बहुत ही दफन है , दिल के इस मजार में ।
निकले न निकल पायेगा , ये साफ समझ लीजिए।।
ये दिल बड़ा बेजोड़ है ,नाजुक न समझ लीजिए।
लोहे से भी मजबूत है , ये जान लीजिए ।।
घुस गया है राज गर , निकल नहीं वो पायेगा ।
दफन भी साथ होगा , ये यकीन कीजिए ।।
ज्वालामुखी को दाबना , होता नहीं आसान पर ।
राज ,राज ही रहेगा , बात मान जाइए ।।
दिल में दबाये रखना , होता नहीं आसान है ।
घुटन बहुत ही होता , ये जान जाइए ।।
कहना मुझे था जो भी , मैने तो कह दिया पर ।
बात मानिए , न मानिए , ये आप जानिए ।।