प्रकृति करती न्याय सदा, कर्मों का मिलता फल है.
कभी शीघ्र तो कभी देर से ,पर अंजाम अटल है.
‘गलत काम का गलत नतीजा ‘लोग सत्य कहते है.
सजा उन्हें मिलती जाती ,पर समझ नहीं पाते हैं..
काम ,क्रोध,मद,लोभ का चश्मा, जब ऑंखों पर चढ़ता॰
तुच्छ चीज भी उस चश्में से, मूल्यवान है दिखता..
ये चार चोर घुस जिस दिल में, है जितना पैठ बना लेता.
दुश्चरित्र व अनाचारी, है उतना उसे बना देता..
जो कोई इन चोरों को, अपने वश में कर लेता.
मानवता से उपर उठ वह महामनुज बन जाता..
मानव दिल तो स्वयं आप में,शुद्ध रहा करता है.
काम, क्रोध, मद और लोभ, पर उन्हें दूषित करता है..
जन ज़्यादातर आज फंसे हैं, इन दोषों मे जमकर.
भौतिकता में डूब रहे ,आकण्ठ, ज्ञणिक मस्ती ले कर..
इस मायावी जगत में अपना, कर्म भूल जाते हैं.
भटक के अपनी राहों से, वे विलग चले जाते हैं..
सत्पथ पर जब अडिग रहोगे, सत्कर्म जो करते जाओगे.
मानवता के आसमान का, चन्दा तुम कहलाओगे..
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
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आपका बहुत – बहुत आभार ।
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