आये थे क्यों दुनियाँ मेंर

आये थे क्यों दुनियाँ में, कुछ करना था कर छोड़ चले ।
क्या फर्ज निभाया है अपना , या यूँ कुछ कर मुख मोड़ चले।

भूल भुलैया सी ये दुनियाँ, आ कर यहाँ भटक जाते ।

करना क्या था,क्या कर देते, अपनी राहों से हट जाते।।

मानवता का पथ छुट जाता ,कुपथ पर आगे बढ़ जाते।।

उन दिगभ्रमितों का क्या कहना ,गलत को सही समझ लेते।

उनको जहाँ पहुँचना था ,पर कहीं पर और पहुँच जाते।।

‘गलत काम का गलत नतीजा ‘ सच दिखने हैं लग जाते।

जिसने भी यह कथन कहा हो , सत्य नजर आने लगते।।

विवेक मिला मानव को ज्यादा ,काम न उससे क्यों लेते?

पहचान भले का या बुरे का ,नहीँ क्यो उससे कर लेते ??

वही मानव बिख्यात हुए,जिसने विवेक से काम लिये।

भला कौन है ?कौन बुरा है? सही उसका पहचान किये।।

बढ़ते सदा वही जीवन में ,जो विवेक से काम लिये ।

जग को नव-पथ दिखला कर ,जीवन में नया बहार दिये।।

तन मन की उर्जा को अपनी,दिशा जो सही प्रदान किये ।

वही विश्व में सदा चमकते,रौशन अपना नाम किये ।।

स्वयं चले सदराहों पर ,चल कर औरों को राह दिये।

जीवन पथ का दिग्दर्शक बन ,नूतन हमको पैगाम दिये।।

 

 

 

 

 

 

वही

 

 

कान्हा तेरी बन्सी बजती होगी…

आया सावन माह कान्हा,तेरी बंशी बजती होगी।
तूँ झूले झूल रहे होगे,तेरी गईया चरती होगी।।
आया सावन माह,कान्हा,तेरी……….

वृन्दावन में रास रची ,होगी सारे बन में ,उपवन में ।
कहीं कुँज में बैठ मजे से, तेरी मुरली बजती होगी ।।
आया सावन माह कान्हा ,तेरी बंशी………….

घूम घाम कर गईया बन में ,घास हरी चरती होगी ।
ग्वाल-बाल संग बैठ खेल , मस्ती तेरी चलती होगी।।
आया सावन माह ,कान्हा…………….

बरसाने की राधा रानी, दौड़ चली आई होगी ।
गोपियन की पूरी टोली भी ,उन संग आयी होगी।।
आया सावन माह,कान्हा………….

कभी फुहारें आसमान से ,बादल बरसाती होगी ।
काले घन को देख मोरनियाँ, ता थैया करती होगी।।
आया सावन माह,कान्हा………….

ओ काली कमली वाले तूँ ,ऐ गोवर्धन धारी ।
ऐ जसुमति के लाल ,दरश को अँखिया रोती होगी।।
आया सावन माह ,कान्हा……..

गिरिधर तूँ ही , तूँ मुरलीधर,तूँ चक्र सुदर्शन धारी ।
जो जी चाहे तुझको बोलूँ ,जब जो ईच्छा होगी ।।
आया सावन माह , कान्हा तेरी………….

तेरी सहेलन सात शतक ,संग में गोपों की टोली ।
माखनचोरी और चितचोरी,जम कर चलती होगी।।
आया सावन माह ,कान्हा तेरी बज……………

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