अंधेरे बादलों की ओट से ,जब कौधती है बिजलियाँ।
पवन भी शांत हो चुपचाप, अवलोक करती रश्मियाँ ।।
भानु छिप देखता दर्शक बना , है सब नजारा ।
न चलता जोर तम पर , देखता बन कर बेचारा ।।
दिन भी दिखाई पर रहा , कुछ रात जैसा ।
भयावह दिख रहा , प्रकृति का सब दृश्य कैसा ।।
गगन से बादलों की , घड घडाती शोर लगती ।
कि जैसे कुँजरों की झुँड है , चिघ्घार करती ।।
कभी तो दामिनी की , जगमगाहट कौधती है ।
अंधेरा दूर होती क्षणिक, फिर तम रौंदती है ।।
शुरु होता झमाझम , बादलों से जल बरसना ।
छतों पर टपटपाहट , शोर बूंदों का टपकना ।।
भयानक सब समाँ बदला , सुनहरा रूप ले कर ।
अंधेरा छँट गया , प्रकाश निकला मुखर हो कर ।।
स्पष्ट दिखता आसमाँ , नीला गगन भी ।
नहीं दिखलाई देता, स्वच्छ नभ में धूल कण भी ।।
प्रकृति को देख अपना ,कुछ क्षणों में रंग बदलना ।
या समझो स्वयं अपनी शक्ति से ,सब ढंग बदलना ।।
हमें समझा रही है , कुछ नजारायें दिखा कर ।
कभी कुछ रूष्ट हो कुछ , शख्त प्रदर्शन करा कर ।।
न मानव मानता तब भी ,न उस पर ध्यान देता ।
उपेक्षा हर तरह से कर , नहीं सम्मान देता ।।
सदा अवरोध बन कर ,सामने भिड़ तंग करना ।
बनाई खुद नियम को , मद में आ कर भंग करना।।
नहीँ परिणाम होगा क्या , न इसका गम उन्हे है ।
मही डूबे तो डुब जाये , न चिन्ता भी उन्हे है ।।
अनेको पुश्त बीते , सदियों हजारों वर्ष बीते ।
रहे कोई नहीं , आये- गये सब हाथ रीते ।।
बची कुछ तो बची बस , मात्र कुछ की कृतियाँ ।
गये आये तो वैसे , अनगिनत ही हस्तियाँ ।।
गये भेजे जगत में , आये तो सत्कर्म कर लो ।
मनुज बन आये मही पर ,स्व-धर्म का निर्वहन कर लो।।
अवसर भी ज्यादा , पास तेरे है नहीं अब ।
बुलावा आयेगी जाने को , रह तैयार तो अब ।।
सदा तैयार रहना ,गमन तो निश्चित समझ लो ।
नबाकी कर्म रह जाये बचा, ये ध्यान धर लो ।।
बस सोच तुम आये , जगत में कर्म करने ।
न अपूर्ण रह जाये बचा , सब पूर्ण करने ।।
बहुत से रूग्न हैं जग में , बहुत हैं बेसहारा ।
जरूरत है उन्हें तेरी , तूँ उनका बन सहारा ।।
सबों में प्यार भर इतना , कि छलके दिल का प्याला।
जरूरत ही न रह जाये, उन्हे पीने को हाला ।।
जो पीते सब यही कहते , भुलाता गम इसी से ।
गमों को त्यागने को ,दिल लगाता हूँ इसी से ।।
जो प्याला भर के रहता पूर्ण, रहता खुद छलकते।
जरूरत ही न रहती है, उन्है कुछ और मधु के ।।
न छूती गम उन्हे ,क्योकि भरा है प्रेम उसमें ।
लबालब है भरा थोडा ,नहीं है रिक्त उसमें ।।