कबीर जयन्ती के अवसर पर ……..
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देख कुरीति मानव मन का , अपने अश्रु से धोया ।
खूब बुझाया जन-मन को , फूट – फूट कर रोया।।
तब देख कबीरा रोया…….
पाहन पूजन भी हिन्दूओं का ,मन को उन्हें न भाया ।
बाँग लगाना भी मुस्लिम का ,दिल को कम नहीं दुखाया।।
तब देख कबीरा रोया …….
हिन्दू – मुस्लिम एक हैं दोनों ,मानव का धर्म बताया ।
बयमनस्यता घर कर गयी मन में ,दोनों को समझाया ।।
तब देख कबीरा रोया …….
धर्म नहीं कुछ और है होता ,जीने का पथ है केवल ।
हेर-फेर थोडा़ सा कर , अपना राह बताया ।।
तब देख कबीरा रोया …………
दृष्टांत अनेको दे दे कर ही , दोनों को समझाया ।
कहीं जरूरत पड़ी अगर तो , झट फटकार लगाया ।।
तब देख कबीरा रोया ………..
लेना इनसे ज्ञान है ले लो , क्यों मजहब का रोना ?
फूल कमल सा है ये जल का , निर्मल को क्या धोना??
तब देख कबीरा रोया ……………
ना कोई हिन्दू , ना कोई मुस्लिम, मानव केवल बन आया ।
क्यों इनके पचड़े में पड़ते , लोगों को ये समझाया ।।
तब देख कबीरा रोया ……………..
“तब देख कबीरा रोया&rdquo पर एक विचार;