(मुक्तक)

न कर में तीर है तेरी ,कमर में भी नहीं खंजर।

दिल को पर है तड़पाती ,चुभोये बिन कोई नश्तर।।

जिगर में बैठ गयी घुस कर,जगह ऐसी बनाई पर।

दफन अब साथ ही होगी,मरूँगा दिल में ही रख कर।।

कह कर जताते हैं नहीं…… (गजल)

प्यार जो करते कभी ,कह कर जताते हैं नहीं ।
रखते बसा के दिल में ही ,बाहर कभी लाते नहीं।।

रखते उसे महफूज भी , हर बला से ही सदा ।
नजरें बुरी भी ना लगे , पर्दा को हटाते नहीं ।।

घुट-घुट के ही रहता सदा ,शोला धधकता दिल में है।
रखे हुए हैं दाब कर , बाहर धुँआ आता नहीं ।।

हद न जाये पार कर , तोड़ दे दीवार को ।
पर दिल भरा हो प्यार से , प्यार तो मरता नहीं ।।

झेल तो लूँगा बलायें , सामने जो आयेगी ।
प्यार तो महफूज है , मैं कभी डरता नहीं ।।

बन गयी सबब यही , अब तो मेरी जिन्दगी की ।
आदत सी हो गयी मुझे , दिल में उसे धरता नहीं ।।

दफन भी हो जाऊँ अगर , तो साथ ही वह जायेगा ।
रूह तो मरता नहीं , प्यार भी मरता नहीं ।।

प्यार जो करते कभी ,कह कर जताते हैं नहीं…………………

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तब देख कबीरा रोया

कबीर जयन्ती के अवसर पर ……..

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देख कुरीति मानव मन का , अपने अश्रु से धोया ।
खूब बुझाया जन-मन को , फूट – फूट कर रोया।।
तब देख कबीरा रोया…….

पाहन पूजन भी हिन्दूओं का ,मन को उन्हें न भाया ।
बाँग लगाना भी मुस्लिम का ,दिल को कम नहीं दुखाया।।
तब देख कबीरा रोया …….

हिन्दू – मुस्लिम एक हैं दोनों ,मानव का धर्म बताया ।
बयमनस्यता घर कर गयी मन में ,दोनों को समझाया ।।
तब देख कबीरा रोया …….

धर्म नहीं कुछ और है होता ,जीने का पथ है केवल ।
हेर-फेर थोडा़ सा कर , अपना राह बताया ।।
तब देख कबीरा रोया …………

दृष्टांत अनेको दे दे कर ही , दोनों को समझाया ।
कहीं जरूरत पड़ी अगर तो , झट फटकार लगाया ।।
तब देख कबीरा रोया ………..

लेना इनसे ज्ञान है ले लो , क्यों मजहब का रोना ?
फूल कमल सा है ये जल का , निर्मल को क्या धोना??
तब देख कबीरा रोया ……………

ना कोई हिन्दू , ना कोई मुस्लिम, मानव केवल बन आया ।
क्यों इनके पचड़े में पड़ते , लोगों को ये समझाया ।।
तब देख कबीरा रोया ……………..