बेटियाँ

बेटों को कहते सब , दीपक अपने कुल का।
पर दो कुलों का दीपक , होती है बेटियाँ ।।

मायके में जन्म ले कर, संस्कार लेती ,पलती ।
उस घर को सँवार  कर , रखती है बेटियाँ ।।

बेटों को प्यार ज्यादा , माँ – बाप से है मिलता ।
चुपचाप देख कर भी , सहती है बेटियाँ ।।

शिज्ञा में सुविधा ज्यादा , लेते सदा हैं बेटे ।
परिणाम फिर भी अव्वल , लाती है बेटियाँ ।।

सदा से इनके पर को , रखा है बाँध हमने ।
मौका मिला तो चाँद से, हो आई बेटियाँ ।।

हिमालय की चोटियों पर , चढ़ना बडा़ था दुष्कर ।
चढ़े थे पहले बेटे , अब चढ़ती भी बेटियाँ ।।

माँ- बाप बृद्ध होते , लाचार हर तरह से ।
बनकर छड़ी, सहारा , देती है बेटियाँ ।।

तुमने जना दोनो को, दोनों में गुण बराबर ।
मौका दो और देख लो , क्या कम है बेटियाँ ।।

विभेद मन मे जो है, बेटे और बेटियों का ।
बस भेद को मिटा दो , फिर देख बेटियाँ ।।

समाज के नियम को, जिसने भी हो बनाया ।
ऐ बेरहम बता क्या , दुश्मन थी बेटियाँ ??

बहू रहे या बेटी , दोनों में क्या है अंतर ?
बहुऐं भी उस  घर की , होती है बेटियाँ ।।

कहते हैं घर की लज्ञ्मी, सब लोग मानते हैं ।
निभाती धर्म अपना , हर दम ही बेटियाँ ।।

अस्मिता भी जग में , बची है आज तक जो।
सम्हाले संस्कृति को , रखी है बेटियाँ ।।

अंतरिक्ष का भ्रमण कर के ,लौट आई चावला ।
सोंचिये बचा क्या , जो कर न सके बेटियाँ ।।