उलझन में मैं पडा़ हूँ , तेरी क्या मिसाल दूँ ।
ढूंढे न मिल रहा है , कुछ कहूँ तो क्या कहूँ ॥
सुबह का आफताब बोलूँ , राकेश या कहूँ ।
मैं सोच ही न पा रहा , कहूँ तो क्या कहूँ ॥
आफताब की दमक तो , तुझ सा लगे सही ।
कैसे पंखूड़ी गुलाब को , तपिश भला कहूँ ॥
तुझे चाँद बोलने में , होता मुझे झिझक ।
दमकते हुए आनन को , दागदार क्यो कहूँ ॥
तुम बेमिसाल हो , है तुझ सा जग में न कोई ।
ढूढ़े न ढूढ़ पा रहा , तुझ सा किसे कहूँ ।।