दिल के दर्पण में

दिल के  दर्पण में , न कोई और नजर आयेगी ।
आओ खुद देख लो ,बस तूँ ही नजर आओगी ।।

तुम जो हो साथ, ये जगत, लगे अपना.सा है।
रहो न तू जो, जग व्यर्थ  नजर आयेगी ।।

बना के भेजी गयी तू , बस मेरे ही लिये ।
खुदा का लाख शुकर , साथ अब निभाओगी।।

मैं एक चिराग हूँ, खाली सा, मिट्टी का बना  ।
नेह और बाती तुम, दूर तम भगाओगी ।।

जिन्दगी ताल सी भरी मेरी, कोरे  जल से ।
कमल का फूल बन तू , रंग तुम जमाओगी ।।

तेरे बगैर, इस जीने में, कोई सुवास नहीं ।

तुम जो पास हो, जीवन मेरा महकाओगी ॥ दिल के  दर्पण में…..

उलझन में मैं पड़ा हूँ

उलझन में मैं पडा़ हूँ , तेरी क्या मिसाल दूँ ।

ढूंढे न मिल रहा है , कुछ कहूँ  तो क्या कहूँ  ॥

सुबह का आफताब बोलूँ , राकेश या कहूँ ।
मैं सोच ही न पा रहा , कहूँ तो क्या कहूँ ॥

आफताब की दमक तो , तुझ  सा लगे सही ।
कैसे पंखूड़ी गुलाब को , तपिश भला कहूँ ॥

तुझे चाँद बोलने में , होता मुझे झिझक ।
दमकते हुए आनन को , दागदार क्यो कहूँ ॥

तुम बेमिसाल हो , है तुझ सा जग में न कोई ।
ढूढ़े न ढूढ़ पा रहा , तुझ  सा किसे कहूँ ।।