कइसन रंग गुलाल उड़ल हे ,मस्ती भरल हे होली में ।
डुबल उमंग में जियरा सबके, रोके, रुकत ना होली मे।।
मस्ती भरल हे होली में ।
झलक रहल हे बोल से सब के, लाज न तनिको बोली में।
फागुन के जब रंगे चढ़ल त , रोक ,टोक का बोली में ।।
मस्ती भरलहे होली में ।
बासंती रंग सजे गोरी पर , सजल गुलाबी चोली में ।
चुनरी भींगल रंग में डूबल , यौवन, झाँके चोली मे ।।
मस्ती भरल हे होली में ।।
बाज न आवत,करत ठिठोली, सब अपने हमजोली में ।
घटे उमंग तो लागे बढा़ये ,ये गुण , भंग की गोली में ।।
मस्ती भरल हे होली में ।
गावत फगुआ ढोल बजावत, नाचत मिल कर टोली में।
देवर-भाभी साथ जमल हे,कोई हार न मानत होली में।।
मस्ती भरल हे होली में ।।
ब्रज में होली खूब जमल हे , राधे-कृष्ण की टोली में ।
ग्वाल -बाल सब कृष्ण बनत हैं ,गोपियन ,राधा टोली में।।
मस्ती भरल हे होली में ।।
आप सबों को होली की ढेरों शुभकामनाएँ सहित- आपका- सच्चिदानंद सिन्हा
आपने मगही में कविता लिख कर मन प्रसन्न कर दिया। मगध की बोली मगही है अौर इसका गौरवशाली इतिहास अशोक के मगध से जुङा है यह भी जानने वाले कब हीं लोग हैं। बहुत खूबसूरत होली की कविता है।
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