देख नजारा, आज जग का, तरस आता होगा। बदले हालात हैं कितने, नज़र आता होगा।। बना इंसाँ को, तूने ज्ञान से सींचा होगा। सब करेगें कर्म उत्तम, आस लगाया होगा।। करेंगे न्याय सब के साथ, ध्यान सब को होगा। कौन है अपना, कौन पराया, जुदा नहीं होगा।। सारी दुनिया है स्वजन, खयाल ये मन में होगा। गोरा-काला, धनी-निर्धन, सब अपना होगा।। मन में हर, प्रेम बसेगा, सब सुखी होगा। छल-कपट कोई नहीं, ऐसा सुंदर जग होगा॥ पर क्या, हाय, तूने पाया जग, जैसा सोचा? उल्टे करें काम सभी, नैतिकता कुछ है, क्या बचा?? प्रेम, श्रद्धा हो, या हो न्याय व करुणा, या दया। बन चुकी बातें पुरानी, कुछ बची भी क्या? हर तरफ, स्वार्थ है, सब स्वयं में लगे ऐसे। कोई पराया क्या, अपने भी न, अपना जैसे॥ मिले अवसर यूं जो इंसाँ को, भान तुझे होगा। बिक चुके होगे तुम पहले, तब तुम्हें पता होगा ।। पतित होगा ये जग इतना, अनुमान कहाँ होगा? ऐ जग निर्माता, बता, आगे भी क्या गिरना होगा??