दुनियाँ तो रंग बदल लेती, करवट मौसम भी लेता है।
शीत काल की शीत गयी, दस्तक बसंत अब देता है।।
नशा बसंत का चुपके से , छा रहा सकल जीवन पर।
पेड़ो-पौधों पर नहीं सिर्फ, हर जीव-जन्तु के तन-मन पर।।
ठंढ़क से जो सिकुड़े-से थे, थे कहीं ठिठुड़ कर पडे़ हुए ।
शुरू हुई छानी मस्ती, जो सोये थे, उठ खडे़ हुए ।।
ले रहे सभी, आ मस्ती में, तन करके अँगड़ाई भी।
मानो लगा असर होने, लगी खलने तन्हाई भी ।।
कहते लोग नशा जो होता, है मदिरा के जाम में ।
उससे कहीं अधिक मादकता ,आती है मधुमास में ।।
जिधर देखिये उघर खिले है , बागों और उद्यान में ।
धरती है तब्दील हुयी , फूलों के सघन बगान में।।
जिधर देखिये, उधर दिखेगें , रंगों से उद्यान सजा है ।
नयनाभिराम है, दृश्य गजब है, जिधर देखिये मौज-मजा है।।
स्वर्गलोक तो नहीं उतर, क्या धरती पर आया है!
आलोक उसी का है फैला, या देवों की कोई माया है!!
कोयल की कूक सुनाई दी , पेड़ों की झुरमुट से ।
मधुर ध्वनि आई उसकी , गा रही मगन, मस्ती से ।।
मंजरी आम के भर आये, खूशबू भर गयी बागों में ।
भंवरे भी गुन-गुन ध्वनि मधुर, कर रहे रसीले रागों में।।
चहक रहे खग आसमान में, पेड़ों पे, मदमाते हैं ।
कलरव गाते, उधम मचाते, जीवन-संगीत सुनाते हैं ।।
नर-नारी का हाल न पूछो , सब पर बसंत की चढी़ नशा।
नहीं उम्र का भेद रहा , सब के ही हैं अब एक दशा ।।
धुन में अपने सभी मस्त हैं, सब पर मौज चढ़ा है ।
क्या धरती, अब अंबर तक, बासन्ती रंग भरा है ।।