देख नजारा, आज जग का, तरस आता होगा। बदले हालात हैं कितने, नज़र आता होगा।। बना इंसाँ को, तूने ज्ञान से सींचा होगा। सब करेगें कर्म उत्तम, आस लगाया होगा।। करेंगे न्याय सब के साथ, ध्यान सब को होगा। कौन है अपना, कौन पराया, जुदा नहीं होगा।। सारी दुनिया है स्वजन, खयाल ये मन में होगा। गोरा-काला, धनी-निर्धन, सब अपना होगा।। मन में हर, प्रेम बसेगा, सब सुखी होगा। छल-कपट कोई नहीं, ऐसा सुंदर जग होगा॥ पर क्या, हाय, तूने पाया जग, जैसा सोचा? उल्टे करें काम सभी, नैतिकता कुछ है, क्या बचा?? प्रेम, श्रद्धा हो, या हो न्याय व करुणा, या दया। बन चुकी बातें पुरानी, कुछ बची भी क्या? हर तरफ, स्वार्थ है, सब स्वयं में लगे ऐसे। कोई पराया क्या, अपने भी न, अपना जैसे॥ मिले अवसर यूं जो इंसाँ को, भान तुझे होगा। बिक चुके होगे तुम पहले, तब तुम्हें पता होगा ।। पतित होगा ये जग इतना, अनुमान कहाँ होगा? ऐ जग निर्माता, बता, आगे भी क्या गिरना होगा??
महीना: फ़रवरी 2017
संविधान, भारत की शान
संविधान, भारत की शान , हम नमन सभी करते हैं ।
रचा महान ये संविधान , उनका वंदन करते हैं ।।
संविधान ये अद्भुत पा, यह देश निहाल हुआ है ।
प्रजातन्त्र दृढ़ हुआ, और यह देश महान बना है॥
तुम विद्वत, थे निष्ठावान, तुम सोच बड़ी रखते थे।
देशप्रेम से गुंथे, तेरे सर्वस्व राष्ट्र को अर्पित थे॥
तुम्हें नहीं हो भान, मगर तुमने वो काम किया है।
इस महान भारत को तूने, नव उत्कर्ष दिया है॥
उपकृत, कृतार्थ, तेरी संतानें, सदा याद तुझे करते हैं।
श्रद्धा के दो सुमन तुम्हें, हम सब अर्पित करते हैं।।
बड़े लगन और बड़े प्रेम से , तुमने है निर्माण किया ।
वतन के सारे संतानों पर, तुमने कितना ध्यान दिया।।
किया ख्याल हर तबके का, विकास करेगें सब कैसे ।
किसे मदद करनी होगी , लोग बढ़ेगे सब कैसे ॥
छोटे-बड़े, सभी मसलों पर , तुमने कैसे ध्यान दिया ।
बड़ी समझ व सदाचार से, उनका ख़ूब निदान किया ॥
बाबासाहेब भीमराव, तुमने असाध्य को साधा ।
तेरे सहयोगी भी महान थे, नहीं रही कोई बाधा ।।
अथक परिश्रम आप सबों ने, कर संविधान बनाया ।
अपनी तत्परता से, दुष्कर काज, ये ससमय साधा ।।
देश का प्यारा शान तिरंगा, लहराता, भाता है।
मन-मस्तक में संविधान का, ध्यान चला आता है ।।
जब तक सूरज-चाँद रहेगा, भारत में तेरा नाम रहेगा ।
संविधान की बात उठे जब, तब-तब तेरा नाम उठेगा ।।
आया बसंत
दुनियाँ तो रंग बदल लेती, करवट मौसम भी लेता है।
शीत काल की शीत गयी, दस्तक बसंत अब देता है।।
नशा बसंत का चुपके से , छा रहा सकल जीवन पर।
पेड़ो-पौधों पर नहीं सिर्फ, हर जीव-जन्तु के तन-मन पर।।
ठंढ़क से जो सिकुड़े-से थे, थे कहीं ठिठुड़ कर पडे़ हुए ।
शुरू हुई छानी मस्ती, जो सोये थे, उठ खडे़ हुए ।।
ले रहे सभी, आ मस्ती में, तन करके अँगड़ाई भी।
मानो लगा असर होने, लगी खलने तन्हाई भी ।।
कहते लोग नशा जो होता, है मदिरा के जाम में ।
उससे कहीं अधिक मादकता ,आती है मधुमास में ।।
जिधर देखिये उघर खिले है , बागों और उद्यान में ।
धरती है तब्दील हुयी , फूलों के सघन बगान में।।
जिधर देखिये, उधर दिखेगें , रंगों से उद्यान सजा है ।
नयनाभिराम है, दृश्य गजब है, जिधर देखिये मौज-मजा है।।
स्वर्गलोक तो नहीं उतर, क्या धरती पर आया है!
आलोक उसी का है फैला, या देवों की कोई माया है!!
कोयल की कूक सुनाई दी , पेड़ों की झुरमुट से ।
मधुर ध्वनि आई उसकी , गा रही मगन, मस्ती से ।।
मंजरी आम के भर आये, खूशबू भर गयी बागों में ।
भंवरे भी गुन-गुन ध्वनि मधुर, कर रहे रसीले रागों में।।
चहक रहे खग आसमान में, पेड़ों पे, मदमाते हैं ।
कलरव गाते, उधम मचाते, जीवन-संगीत सुनाते हैं ।।
नर-नारी का हाल न पूछो , सब पर बसंत की चढी़ नशा।
नहीं उम्र का भेद रहा , सब के ही हैं अब एक दशा ।।
धुन में अपने सभी मस्त हैं, सब पर मौज चढ़ा है ।
क्या धरती, अब अंबर तक, बासन्ती रंग भरा है ।।