गणतंत्र दिवस हम सब मिल कर ,आज मनाने आये ।
सरसठ वर्ष अब पूर्ण हुये , हम खुशी मनाने आये ।।
उन्नीस सौ सैंतालिस सन् था , आजादी जब पाये ।
ढ़ाई वर्ष का समय लगा , अपना संविधान बनाये ।।
सन् पचास छब्बीस जनवरी को, लागू जब कर पाये।
तभी दिवस गणतंत्र -पर्व , हम पहले पहल मनाये ।।
गणतंत्र के जनक हमीं थे, वैशाली में जन्म हुआ ।
शनै:-शनै: सर्वत्र विश्व ने, अपना इसको धन्य हुआ।।
राष्ट्रीय पर्व के रुप में , श्रद्धा से इसे मनाते हैं ।
नयी पीढ़ी के लोगों को भी , इसकी बात बताते हैं ।।
तिरंगा मेरा राष्ट्र-ध्वज , आसमान में लहराता ।
बड़े गर्व से नील गगन में ,सीना ताने फहराता ।।
भारत माँ की संतानों को, जान से ज्यादा यह प्यारा।
हम अरबों भारतवासी के, ये आँखों का है तारा ।।
जान जाये तो जाये भले, तिरंगे का पर शान रहेगा ।
भारत का हर बच्चा-बच्चा ,देख पूछ, सब यही कहेगा ।।
देश प्रेम का यह जज्बा, हर जन के मन में भरी रहे ।
अमर शहीदों की कुर्बानी, यादों में अपनी बनी रहे।।
पराधीनता की बेड़ी से, माँ भारती कैसे मुक्त हुई ।
जाने कितनों ने दी कुर्बानी, तब यह बंधनमुक्त हुई।।
भारत की नयी पौध, सुनो, वे कितने सितम सहे थे ।
कितने लालों ने जान गंवा, माँ को तब मुक्त किये थे।।
सावधान तुम रहो सदा, दुश्मन अभी न कम हैं ।
गणतन्त्र की पायों में, बना रहे वो दम है॥
एक चुनौती, विकट बड़ी, मुँह बाए आज खड़ी हैं।
भ्रष्टाचार के दीमक की, गणतन्त्र को नज़र लगी है॥
देख कहीं यह दीमक, इस देश को दुर्बल न कर पाये।
इसकी काली छाया से, गणतन्त्र को ग्रहण न लग पाये॥
आन पड़ी है आज जरूरत, कुछ कर दिखलाना होगा।
भ्रष्टाचार का भूत यहाँ से, तुम्हें भगाना होगा।
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