मेघा बरसे

घनन-घनन घन मेघा बरसे, पिया मिलन को जियरा तरसे.

भींगे चुनरिया तन-मन भीगे ,यौवन-मन मन ही मन हरसे..

चमके बिजुरिया रह रह कर के, थम-थम कर के मेघा गरजे.

दामिनी-दमक नभ में फैले, तम को ज्योतिर्मय कर दे..

अंधकार साम्राज्य बना कर, अपना ही सिक्का चलवा दे.

दिवा बना चुपचाप बेचारा, आत्म समर्पण कर के..

सुध-बुध खो कर, बेसुध हो कर, प्रिया न धीरज ही खो दे.

पागल मनवॉं विरह अग्नि में, कुछ अनहोनी ही कर दे..

कभी पवन के झोके आ कर ,दरवाजा खट -खट कर दे.

दौड़े आती दरवाजे तक ,अपनी सुध- बुध को खो दे..

बहुत जलन होती है दिल में ,जिसे बारिश नहीं बुझा पाये..

जलन स्वयं बुझ जाये जब , साजन अपना घर आ जाये..

थम जाओ ऐ मेघा प्यारे, क्यों इतनी आफत बरपाये.

फिर चाहो जितना बरसो, साजन तो घर आ जाये..

मेघा बरसे&rdquo पर एक विचार;

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