श्रद्धा-सुमन पिरो-पिरो, तेरी चरणों पर रखता हूँ.
नयन-नीर, गंगाजल-सा, तुझ पर अर्पित करता हूँ..
शहीदों, नमन तुझे करता हूँ..
दिया देश को जीवन नूतन, तोड़ा मॉं की जंजीरों को.
बंधे हाथ थे मॉं के कब से, दिया तोड़ उन बेड़ियों को..
बलशाली अति थे दुश्मन, थे अस्त्र बहुत गोरों के पास.
निर्मम थे, अत्याचारी, थे कुटिल बड़े उनके अंदाज..
व्यापारी बन, घुस आया, लूटा मेरे देश की दौलत को.
हमें गुलाम बना कर रखा, कुचला मेरी गैरत को..
अधिकार नहीं कुछ था मेरा, अधिकारी बस गोरे थे.
हमें सिर्फ सेवा था करना, हुक्म चलाते गोरे थे..
जुल्म हमें सहना पड़ता था, उन जुल्मी, उन गोरों का.
अपने ही घर में था सहना, उत्पीड़न उनके कोड़ो का..
तेरी ही यह देन शहीदों, ऐ मेरे प्यारे पूर्वजगण .
मुझे छोड़ कर चले गये तुम, दिये देश को जन-गण-मन..
तेरी ही वह अभिलाषा, बन आज तिरंगा लहराता.
बड़े शान से शेरों जैसा, सीना अपना फैलाता..
नमन सदा तुझको है, मेरे पुरखों, मेरे अमर शहीदों.
उम्मीदें तेरी पूर्ण कर सकें, शक्ति हममें इतनी भर दो..
तेरे पावन कदमों में, मैं गर्व से शीश नवाता हूँ.
ऐ अमर शहीदों पुन: पुन:, मैं नमन तुझे करता हूँ..
शहीदों, नमन तुझे करता हूँ..