चलो चॉंदनी में चल कर, सपनों का एक महल बनायें.
कोलाहल से दूर बहुत, हम सब मिल इसे सजायें..
बुद्ध विहार की शान्ति जहॉं हो,उन सा ही एक जोत जलायें.
रहे न क्लान्ति मन में थोड़ी, दुर्गुण मन का सभी भगायें..
ज्ञान-धर्म की बात जहॉं हो, एक ऐसा अलख जगायें.
कर्म-आचरण शुद्ध रहे, सद्गुण की जोत जलायें..
परपीड़ा से दुखे जहॉं मन, दुख देवे ना कोय.
जहॉं प्रेम की निर्झरणी में, रहते सभी भिगोय..
प्रेम मित्र हो,सखा प्रेम हो, घृणा जहॉं ना होय.
जहॉं देखिये प्रेम गुंथा हो, प्रेम लबालब होय..
प्रेम-प्रेम हर ओर भरा, बिन प्रेम नहीं कुछ होय.
प्रेम न होता, जग न होता, होता यहॉं न कोय..
ढ़का आज पर प्रेम यहाँ, मद, काम ,क्रोध की चादर छाय.
आओ सब मिल करें यतन, कि चादर ये हट जाय..
स्वच्छ प्रेम हो, निर्मल-शीतल, मन का स्वच्छ सुभाय.
घृणा न हो, बस प्रेम भरा हो, जीवन सुंदर यह होय..
कोलाहल से दूर बहुत,हम सब मिल इसे सजायें.
चलो चॉदनी में चल कर, सपनों का एक महल बनायें..
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