भिन्न-भिन्न हैं भाषा सारे, भिन्न तरह का वेश है. भिन्न तरह के रंग रूप हैं, भिन्न-भिन्न परिवेश है.. रहन-सहन भी अलग हैं सारे, खान-पान भी भिन्न-भिन्न हैं. कद-काठी सब भिन्न तरह के, रस्म-रिवाजें सभी भिन्न हैं.. कहीं पे गरमी, तपती धरती, रेत-रेत ही भरा हुआ है. मरुभूमि हैं बडी-बड़ी, कांटा बबूल का भरा हुआ है.. कहीं है गरमी, कहीं पे ठंडी, कहीं बर्फ से जमीं ढ़की है. कहीं तो सागर की लहरें हैं, पर्वत कहीं गगनचुम्बी है.. कहीं आधुनिक शहर बसे हैं, भौतिकता में डूब रहे हैं. ज़्यादातर पर लोग गाँव में, सुख-सुविधा से दूर खड़े हैं.. कहीं-कहीं जंगल घनघोर, हिंसक जीवों से भरे पड़े हैं. जन-जाति भी उसी बीच में, जीवन अपना बिता रहे हैं.. बहुत अन्य बातों में भी है, मिलती अनेकों भिन्नता. पर इन सारी भिन्नताओं में, मजबूत बनी है एकता.. फर्क न पड़ता, रहें बिहारी ,या हम हों बंगाली. रहें मराठी, उडिया भाषी, या कोई गुजराती.. चाहे कश्मीरी हों हम, या हम हों केरलवासी. भिन्नताएँ हैं भरी पड़ी, पर हम केवल भारतवासी.. सभी धर्म के लोग यहाँ, पर सब भारत के लाल . मजहब चाहे कुछ भी हो,पर दिल में नहीं मलाल .. हम भारत के लाल सभी,भारत को माता हैं कहते. भारत की सेवा में हम सब, सदा ही तत्पर रहते.. रहे राज्य कोई भी, पर हम, हैं इस देश के वासी. हम सबसे पहले हैं केवल, केवल भारतवासी..