रचनेवाला रचा, प्यार ही गर न होता.
हाल दुनिया का सोच, क्या हुआ आज होता..
यूँ तो रहती ये दुनिया, जीव-जन्तु भी रहते.
पर है कहना कठिन, सब साथ कैसे जीते..
प्यार ही वो बंधन, है संभाले जो सबको.
बांध रखा यही, सारी दुनिया में सबको..
जीव-जन्तु सभी, ये सब चॉंद-तारे.
पेड़-पौधे या खग हों, या तितली ये न्यारे..
बांध कर सबको रखे, ये बंधन की कड़ियाँ.
है अद्भुत बड़ी, प्रेम बंधन की लड़ियाँ..
टूट सकते जगत के, हैं सारी कडी़.
टूट पाता नहीं, प्रेम की पर लड़ी..
आज युग है मिलावटी, न खॉंटी बचा.
प्यार पावन जो था, अब अपावन हुआ..
प्यार में आज, धोखा है होने लगा.
प्यार में बोध कम, ढोंग बढ़ने लगा..
प्यार है बन गया, आज मीठा जहर.
कम है मचता नहीं, आज इसका कहर..
अब छलावा बहुत, मिल गया प्यार में.
जाने साजिश छिपा क्या, भरा प्यार में..
भरोसा करूँ, तो करूँ, किस पे अब.
भरोसे के काबिल, रहा कौन अब..
फिर भी दुनिया चलाता, यही प्यार है.
बिना प्यार सूना, ये संसार है..
रचनेवाला रचा, प्यार ही गर न होता.
आज तक ये जहॉं भी, रहा ही न होता..