पीने का कुछ न कुछ, बहाना बना देते हैं.
उठा के ज़ाम सभी, जहर का पी लेते हैं..
पता सभी को है, ये चीज है बहुत ही बुरी.
फिर भी उस ज़ाम को, होठों से लगा लेते हैं..
जिन्दगी छोड़ कर जाना तो है, निश्चित ही कभी.
कुछ लहमों को क्यूँ, खुद यूँ ही, लुटा देते हैं ..
खुद हैं पीते मगर, लेते नहीं तोहमत खुद पे.
दोष कुछ ढूढ कर, औरों पे लगा देते हैं..
खुद ही बेहोश रहते, न होता कोई होश उन्हे .
इल्जाम-ए-बेहोशी का, पीने पे लगा देते हैं..