मैं एक बूंद हूँ पानी का, प्रताड़ना मत करना.
मुझे अदना-छोटा समझ, अवमानना मत करना..
‘मैं ‘ से ‘हम’ बन कर, मिलजुल, सागर भी हम बनाते हैं.
गौर कर मेरी बात पर, अवहेलना मत करना..
ये विशाल सागर भी, मेरे ही दम-खम से है.
मुझे कम ऑंकने की, जुर्रत भूल कर भी मत करना..
ये मेरी धमकी नहीं, एक उचित मशविरा समझो.
महज प्रलाप करने की, तुम भूल मत करना..
हम मे लय बडवानल भी, है पर गुमसुम.
उभारने की इसको, चूक भी मत करना..
हमीं से जिन्दा हैं, सब जीव-जन्तु, पौधे भी.
अपनी जिन्दगी को, बेवजह, बर्बाद मत करना..
मैं सुधा हूँ, पावन हूँ, जिन्दगी देता हूँ सबको.
गन्दगी डाल कर मुझमें, अपावन मुझे मत करना..
मैं हूँ, तभी सब हैं, चारों तरफ.
मुझे बर्बाद कर, खुद को ही, बर्बाद मत करना..
मैं कहॉं नहीं ,जल में, थल में और पवन में हूँ.
मुझे पृथक कर, खुद को पृथक तू मत करना..
मैं पंच तत्वों में एक, सृष्टि सृजन में अहम हूँ.
मुझे बिध्वंस करने की चेष्टा, भूल कर भी मत करना..
मैं एक बूंद हूँ पानी का, प्रताड़ना मत करना.
मुझे अदना-छोटा समझ, अवमानना मत करना..
bahut badiya laga. bada achcga srijan hai…
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