पीने का कुछ न कुछ, बहाना बना देते हैं.
उठा के ज़ाम सभी, जहर का पी लेते हैं..
पता सभी को है, ये चीज है बहुत ही बुरी.
फिर भी उस ज़ाम को, होठों से लगा लेते हैं..
जिन्दगी छोड़ कर जाना तो है, निश्चित ही कभी.
कुछ लहमों को क्यूँ, खुद यूँ ही, लुटा देते हैं ..
खुद हैं पीते मगर, लेते नहीं तोहमत खुद पे.
दोष कुछ ढूढ कर, औरों पे लगा देते हैं..
खुद ही बेहोश रहते, न होता कोई होश उन्हे .
इल्जाम-ए-बेहोशी का, पीने पे लगा देते हैं..
महीना: मार्च 2016
मैं एक बूंद हूँ पानी का
मैं एक बूंद हूँ पानी का, प्रताड़ना मत करना.
मुझे अदना-छोटा समझ, अवमानना मत करना..
‘मैं ‘ से ‘हम’ बन कर, मिलजुल, सागर भी हम बनाते हैं.
गौर कर मेरी बात पर, अवहेलना मत करना..
ये विशाल सागर भी, मेरे ही दम-खम से है.
मुझे कम ऑंकने की, जुर्रत भूल कर भी मत करना..
ये मेरी धमकी नहीं, एक उचित मशविरा समझो.
महज प्रलाप करने की, तुम भूल मत करना..
हम मे लय बडवानल भी, है पर गुमसुम.
उभारने की इसको, चूक भी मत करना..
हमीं से जिन्दा हैं, सब जीव-जन्तु, पौधे भी.
अपनी जिन्दगी को, बेवजह, बर्बाद मत करना..
मैं सुधा हूँ, पावन हूँ, जिन्दगी देता हूँ सबको.
गन्दगी डाल कर मुझमें, अपावन मुझे मत करना..
मैं हूँ, तभी सब हैं, चारों तरफ.
मुझे बर्बाद कर, खुद को ही, बर्बाद मत करना..
मैं कहॉं नहीं ,जल में, थल में और पवन में हूँ.
मुझे पृथक कर, खुद को पृथक तू मत करना..
मैं पंच तत्वों में एक, सृष्टि सृजन में अहम हूँ.
मुझे बिध्वंस करने की चेष्टा, भूल कर भी मत करना..
मैं एक बूंद हूँ पानी का, प्रताड़ना मत करना.
मुझे अदना-छोटा समझ, अवमानना मत करना..
बचपन मेरे
बचपन मेरे, इतना बता, क्यों याद यूं आते हो तुम. दिल के भरते जख्म को, कुरेद फिर जाते हो तुम.. बचपन की बातें और थी, तब पज्ञी था, उड़ता गगन में. उन्मुक्त था, जाउँ जिधर, दिल सदा रहता मगन मे.. जवाबदेही क…
Source: बचपन मेरे
मैं तो मुसाफिर हूँ
मै तो मुसाफिर हूँ, अकेला, कोई ठौर नहीं.
पथिक मैं उन राहों का, जिनका कोई छोड़ नहीं..
बढ़ता ही जाता हूँ, निरन्तर, अपनी राहों पर.
ले कर विश्रान्ति, कहीं पेड़ों के छाहों तर..
ले लूँ कुछ झपकियॉं भी, पल, या दो पल को.
विराम दे देता हूँ, अपने तन-बल को..
लेटूँ कहीं छाह में, मुलायम, हरे घास पर.
मिटाऊँ थकन मन का, पहुँचने की आस पर..
ले लेती नींद मुझे, अपनी आगोश में.
मैं तो एक राही, दीवाना, कहाँ होश में..
दीवाना तो दीवाना है, उसका कहाँ ठिकाना.
पता-ठिकाना जिसका हो, वो कैसा दिवाना..
मत रोक मुझे, आ मत, मेरी राहों में रोड़े बन कर.
पथिक को जाने दो, राह दो, मार्ग-प्रदर्शक बन कर..
मत रोक मुझे, चलने दो, वर्ना पथिक कहाँ रह पाऊँगा.
रूक जो गया, तो पथिक नहीं, जड़, पत्थर-सा, रह जाऊँगा..
भोले बाबा
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर आप सबों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यह गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है, आप सब को अच्छी लगेगी।
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भोले बाबा, भोले बाबा, सच ही हो तुम भोले.
खाते तुम कुछ और नहीं, लेते बस भंग के गोले..
रहते कैलाश पर, हिमालय पहाड पर.
संग माता पार्वती, बसहा सवार कर..
जहॉं कहीं जाते भोला, संग माता पार्वती.
अर्धॉंगिनी तेरी, मॉं मेरी, सदा तेरे संग होती..
चंदा सोहे सिर पर तेरा, जटे गंगाधार हो.
लपेटे भभूत तन में, नागों का हार हो..
भोले, बिना पार्वती, तुम भी अधूरा हो.
शिव-शक्ति दोनों मिले, तभी होते पूरा हो..
एक कर में डमरू सोहे, एक तिरशूल से.
नटवर का नट लीला, देखो मशगूल से..
भोले बाबा, तू तो सदा, वन में ही वास करते.
रहते जैसे जनजाति, वैसे निवास करते..
कितनी है शक्ति तुझमें, कोई नहीं जानता.
सर्व शक्तिमान तुम हो, सब है ये मानता..
थाह कहाँ पाता कोई, तुम तो अथाह हो.
उसे भी उबार लेते, लगे जो तबाह हो..
मंथन से, सागर के, अमृत-हलाहल मिले.
सब चाहें अमृत, हलाहल फिर कौन पिये..
भोले बाबा, तू ही बस, हलाहल का पान किया.
कंठ में सजा के इसे, दुनिया को त्राण दिया..
भोले बाबा दानी औघर, मांगो वही दान देते.
भले कभी ऐसा कर, खुद ही परेशान होते.. भोले०
जमीं पे जब भी मुझे, तूने उतारा होगा
जमीं पे जब भी मुझे, तूने उतारा होगा.
कोई मकसद भी तेरा, रहा ही रहा होगा..
ढूढता हूँ भी कभी, दिल के हर कोने मे.
कहीं छुपा के उसे,रखा ही रखा होगा..
बताते क्यों हो नही, बता, ए ऊपर वाले.
न बताने का भी कोई, राज़ ही रहा होगा..
दिया उतार तू, अनजान इस जहॉं मे मुझे.
कोई अपना भी नही, बताये क्या करना होगा..
मुझे है डर भी कहीं, जो न तू बतायेगा.
भटक जो जाऊँं अगर, इल्जाम पर तेरा होगा..
तूने बस भेज दिया, और कुछ बताया भी नही.
किससे है मिलना मुझे, काम भी बताना होगा..
न जो बताओगे तो, दोष, बस तेरा होगा.
हो अच्छा या बुरा, जो भी, सब तेरा होगा..
देख मै छोड़ता हूँ,सब के सब, तेरे ऊपर
खता भी होगी अगर, सब के सब तेरा होगा..जमीं पे जब भी …….
बचपन मेरे
बचपन मेरे, इतना बता, क्यों याद यूं आते हो तुम.
दिल के भरते जख्म को, कुरेद क्यों जाते हो तुम..
बचपन की बातें और थी, तब पज्ञी था, उड़ता गगन में.
उन्मुक्त था, जाऊँ जिधर, दिल सदा रहता मगन मे..
जवाबदेही कुछ न थी, सम्राट था मै दिल का अपना.
बालकसुलभ सब काम करना, नित्य दिन का काम अपना..
छल नही था, मल नही, प्रपंच से दिल दूर था.
सच्चाई एवं सादगी के, गुण से मन भरपूर था..
जिद बड़ी थी, ललक भी था, चाहिये तो चाहिये था.
सम्भव था मिलना ,या असम्भव, पर मुझे बस चाहिये था..
सम्भव नही होता सदा, सब पू्र्ण चाहत कर सके जो.
मॉ-बाप चाहे कोई हो, सम्राट ही चाहे रहे जो..
ऊँचे गगन का चॉद प्यारा, ही खिलौना चाहिये.
चमचमाता चॉद, उसको खेलने को चाहिये..
देश परियों का जहॉं है, मै वहॉ पर जाऊँगा.
साथ में कुछ उनके बच्चों, को यहॉ पर लाऊँगा..
हाथी का बच्चा पकड कर, उस कूएं मे डालिये.
बॉध कर रस्से से उनको, खींच बाहर लाइए..
मुड़ कर जो पीछे देखता हूँ, याद आती बात जब.
स्तब्ध हो जाता हूँ मै, सोंच सारी बात अब..
सोंचता ये सारी बातें, स्वप्न सी ही रह गयी.
जाने कब ये त्याग मुझको, कब किधर को चल गयी..
बचपन मेरे, इतना बता, क्यों याद यूं आते हो तुम.
दिल के भरते जख्म को, कुरेद क्यों जाते हो तुम..