ऐ माँ सरस्वती ,मै करूँ वन्दना
अपने दिल मे, मुझे भी जगह दीजिये.
अज्ञानता का तम, है भरा विश्व में
ज्ञान की रोशनी, उसमें भर दीजिये.
न भटकता रहूँ मैं, यूं अन्धेरे में,
ज्ञान मुझको, उजाले का दे दीजिये.
तार वीणा का, झंकार करता तेरा
मेरे मन को भी, झंकृत कर दीजिये. ऐ माँ …
तू है माता मेरी,मै तनय हूँ तेरा,
मुझमें जो भी कमी हो,पूरी कीजिये.
क्या है चाहत मेरी, आप को सब पता,
कामना वह मेरी तो,पूरी कीजिये.
लुटाया करूँ मै, खुले हाथ से,
ज्ञान इतना मुझे, तो दिया कीजिये. ऐ माँ…
लुटाये भी घटता, नहीं ज्ञान है,
और बढ़ता है, मुझ पर कृपा कीजिये.
तेरी महिमा तो जग मे निराली ही है,
हे कृपालु, हम सब पर कृपा कीजिये.
ज्ञान सब को मिले, ज्ञानियों का हो जग,
बस इतना रहम, हम पे कर दीजिये. ऐ माँ…
ज्ञान का थाह तो, जग मे कोई नहीं
अज्ञ को विज्ञ, आ कर बना दीजिये.
ज्ञान सब मे रहे,माँ न भूले हमें,
ज्ञान की ज्योत, मन में जला दीजिये.
तेरी सेवा से मन, हो न विचलित कभी,
ऐसी गंगा कृपा की बहा दीजिये. ऐ माँ…
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