भारत और संत

साधु-संतों की, भारत में, होती रही है पूजा.

अहम भूमिका होती इनकी, कोई नहीं कर सकता दूजा..

ऋषि अगस्त्य, मुनि बाल्मिकी, कपिल मुनि सा ज्ञानी.

विश्वामित्र, नारद, दुर्वाशा, मुनि दधीचि सा दानी..

जाने कितने ऋषि-मुनियों का, देश रहा यह भारत.

दिया इन्होने सदा देश को, बिना लिये कुछ लागत..

रहना-सहना वन मे होता, भिज्ञाटन पर जीना.

गुरूकुल होता पर्ण-कुटीर का, पढ़ना और पढाना..

आदर और सम्मान न पूछो, कितना मिलता था उनको.

ईश्वर का दूजा रूप सदा, समझा जाता था उनको..

ब्रह्मचर्य के पालक थे, वे सदाचार के स्वामी.

पर, तार-तार कर रखा मान अब, कलियुग के कुछ स्वामी..

बदनाम किया गुरू की महिमा, पर फर्क न पड़ता इनको.

सुनते, गर्दन झुकता सबका, पर असर न कोई इनको..

बेशर्मी की हद कर दी, ऋषि-मुनियों को बदनाम किया.

जो चमक रहा था सूरज सा, मद्धिम करने का काम किया..

देख आज के स्वामी जी को, क्या-क्या रंग दिखाते वे.

कोई कुकर्म न है ऐसा, हैं जिसको नही कराते वे..

दुष्कर्मों की चर्चा उनकी, सुनने मे आती जब-जब.

जनमानस की श्रद्धा-भावना, आहत हो उठती तब-तब..

जो सदा देखते थे रहते, ईश्वर का इन में रूप.

कैसे सहन करें देखें जब, अंतरंग का रूप कुरूप..

श्रद्धा पर कठिन प्रहार किया, आचरण बिगाडी़ अपनी.

धोखा दे कर फुसलाना, ठग लेना, उनकी करनी..

इतिहास नही कहता, होता हो कभी घिनौना काम.

साधु बन ब्यभिचार करे, है अति अधम यह काम..

जब कोई साधु-संत स्वयं, यूँ अनाचार अपनाएगा.

धर्म संस्था से, इंसाँ का, मोह भंग हो जाएगा..

ऐसा अधम, पतित, पापी का, जग में रहे न नाम.

सजा इन्हें नायाब मिले, बन सके नज़ीर जो आम..

फिर कोई अधमी, छद्म संत बन, जनमानस से न खेले.

साधु-संत के ज्ञान-पुंज से, जनमन फिर रौशन हो ले..